03 नवंबर, 2022

केवल मुग्धता ही मुग्धता - -

जो खो गए किसी मोड़ पर तो बस खो गए,
घने धुंध में, कौन किस की ख़बर रखता है,
स्मृतियां तो हैं ताश के घर, रंज है बेमानी,
एक बूंद ओस अपना अलग असर रखता है ।

कोई संग चले या नहीं अपना मन्त्र है एक,
चरैवेति चरैवेति, जीवन गतिशील रहता है,
न जाने कहाँ कहाँ ढूंढते हैं, उस अदृश्य को,
चिरकाल से उसी जगह वो मंज़िल रहता है ।

शीशमहल की तरह है निःशेष मोह तुम्हारा,
जिधर भी देखूं मुग्धता का हलचल रहता है,
मृत्यु का सच जो भी हो, जीवन है सम्मोह,
कौन सोचे उस हाथ सुधा या गरल रहता है ।
* *
- - शांतनु सान्याल  
 
 

7 टिप्‍पणियां:

  1. कोई संग चले या नहीं अपना मन्त्र है एक,
    चरैवेति चरैवेति, जीवन गतिशील रहता है,

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (05-11-2022) को   "देवों का गुणगान"    (चर्चा अंक-4603)     पर भी होगी।
    --
    कृपया कुछ लिंकों का अवलोकन करें और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 

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  3. बहुत सुन्दर !
    वास्तव में हमारे जीवन में सब कुछ अनिश्चित ही रहता है.

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  4. बहुत सुंदर मन को छूते भाव।

    स्मृतियां तो हैं ताश के घर, रंज है बेमानी... वाह!

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