17 नवंबर, 2022

लघुत्तम पथ की चाह - -

मध्य यामिनी, सुरभित शेफाली, झर रहे हैं बूंद बूंद ओस,

निःशब्द सरसराहट के साथ, बदलते हैं जीवन के पृष्ठ,
तृण भूमि के सीने में है पुनर संचलन, जो थे नीम बेहोश,

थम चुका है काठ हिंडोला गहन निद्रा में है विशाल नगर,
पद दलित घास का मर्म रहा अज्ञात किसे होगा अफ़सोस,

नग्न वृन्तों पर आ कर, रुक जाती है करुणामयी चाँदनी,
दर्पण के धूम्रजाल में आ कर, मैं खोजता हूँ गहरा खरोंच,

आखरी प्रहर में पहुँच कर श्वास रुद्ध होते हैं सभी चित्कार,
आसान नहीं बदलना, पाषाणयुगीन बड़ी मछली की सोच,

निःशर्त यहाँ कुछ भी नहीं, केवल बदलते हैं प्रस्तुतिकरण,
लघुत्तम पथ की चाह में वो मढ़ते हैं दूसरों पर अपना दोष,
मध्य यामिनी, सुरभित शेफाली, झर रहे हैं बूंद बूंद ओस ।
* *
- - शांतनु सान्याल

2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (19-11-2022) को   "माता जी का द्वार"   (चर्चा अंक-4615)     पर भी होगी।
    --
    कृपया कुछ लिंकों का अवलोकन करें और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 

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