29 नवंबर, 2022

वसीयत - -


वक़्त ए तपिश को, साया ए दीवार नहीं मिलते,
क़ुदरती मोतियों को, सही ख़रीदार नहीं मिलते,

ज़िंदगी हर मोड़ पर चाहती है, खुल के संवरना,
रंग की कोई कमी नहीं पैकर निगार नहीं मिलते,

किताबों तक हैं सिमटे हुए, क़िस्सा ए मसीहाई,
ज़ालिमों की मजलिस में, मददगार नहीं मिलते,

इस शहर में है इक अजीब सी अंतहीन ख़मोशी,
लब ए थिरकन को, मनचाहे झंकार नहीं मिलते,

पतझर में भी मेरी जां मुस्कुराने का फ़न चाहिए,
हर एक को वसीयत में वादी ए बहार नहीं मिलते,
* *
- - शांतनु सान्याल






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