18 नवंबर, 2022

केंद्र बिंदु - -

दिन के ढलान से अनभिज्ञ नहीं है छाया,
उदय के साथ ही अस्त का है पूर्वकथन,
धुंधली घाटियां हैं मृत्यु पार का जीवन,
जितना उलझो उतना ही राज़ गहराया,

पेड़ों को मालूम है हरित दिनों का सुख,
फूल जानता है टहनी से टूटने का दुःख,  
सर्दियों की ख़बर रखती है मसृण काया,
 
गहन निशीथ गुलमोहर का मेघ स्नान,
ह्रदय वृत्त के अंदर हैं, सर्व अभ्युत्थान,
जादुई स्पर्श से अब तक कौन बच पाया,

जीने के लिए ज़रूरी है, नेहों का रसायन,
मूकसंधि के तहत हो, सुन्दर जीवनयापन,
केंद्र बिंदु पर जा भला कौन है लौट आया,
दिन के ढलान से, अनभिज्ञ नहीं है छाया ।  
* *
- - शांतनु सान्याल
  

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past