28 नवंबर, 2022

ख़ाली हाथ - -

सब्ज़ बाग़ दिखा कर, लोग लूट लेते हैं सरे आम,
हर मोड़ पे होता है पोशीदा राहज़नी का इंतज़ाम,

मुखौटों का है मुक़ाबला, नामनिहाद सभी पारसा,
अंधा है हाकिम, घुटनों के बल रेंगता हुआ अवाम,

मुंह में ज़ुबान तो रखता है, बस बोलता कोई नहीं,
सांप सीढ़ी के बीच झूलते हैं सभी यहां सुबह शाम,

सफ़ेद काले चौकोरों में खड़े हैं, नक़ाब पोश मोहरें,
मौक़ा मिलते ही लोग कर जाएंगे, खेल को तमाम,

शहर में मनाया जाता है इन्क़लाब का रोज़ ए मर्ग,
मशाल बरदार हैं ख़ाली हाथ ग़द्दारों को मिले ईनाम,
* *
- - शांतनु सान्याल


6 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 30 नवम्बर 2022 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. मुंह में ज़ुबान तो रखता है, बस बोलता कोई नहीं,
    सांप सीढ़ी के बीच झूलते हैं सभी यहां सुबह शाम,
    सफ़ेद काले चौकोरों में खड़े हैं, नक़ाब पोश मोहरें,
    मौक़ा मिलते ही लोग कर जाएंगे, खेल को तमाम,
    ...बहुत सही

    जवाब देंहटाएं
  3. आदरणीय सर, वर्तमान परिस्थिति में आम जनता की दुर्दशा और सत्ताधारियों का भ्रष्टाचार दर्शाती बहुत ही सुंदर और सशक्त कविता जो आत्मा को झकझोर देती है। सच है कि आज की अवाम भ्रष्ट नेताओं के आगे बहुत बेबस और असहाय है। इस रचना के लिए आपको हार्दिक आभार एवं सादर प्रणाम। आपसे एक अनयरोध है, कृपया मेरे दोनों ब्लॉग पर आ कर अपना आशीष दें।

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