भीड़ भरे राहों में, ख़ुद को तन्हा न कीजिए,
मिलने की चाह हो, कोई तक़ाज़ा न कीजिए,
दहलीज़ के पार, बेहद ख़ूबसूरत लगे दुनिया,
घर के अंदर रहने वालों को, रुस्वा न कीजिए,
बहोत ही मुश्किल से मिलते हैं, दिलों के पुल,
डुबकनी कश्ती की तरह, यूँ दग़ा न कीजिए,
घूमते आईने की तरह है, मौसम का मिज़ाज,
बंद आंखों से हर शख़्स पर, भरोसा न कीजिए,
न जाने किस छत पर, जा गिरे बर्क़ ए ख़तर,
खुल कर हंसिये यूँ मुंह दबाए हंसा न कीजिए,
बर्ग ए कंवल की तरह हो, ज़िन्दगी का दामन,
मुखौटों के आड़ में दुनिया को ठगा न कीजिये ।
* *
- - शांतनु सान्याल
14 नवंबर, 2022
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past
-
नेपथ्य में कहीं खो गए सभी उन्मुक्त कंठ, अब तो क़दमबोसी का ज़माना है, कौन सुनेगा तेरी मेरी फ़रियाद - - मंचस्थ है द्रौपदी, हाथ जोड़े हुए, कौन उठेग...
-
कुछ भी नहीं बदला हमारे दरमियां, वही कनखियों से देखने की अदा, वही इशारों की ज़बां, हाथ मिलाने की गर्मियां, बस दिलों में वो मिठास न रही, बिछुड़ ...
-
मृत नदी के दोनों तट पर खड़े हैं निशाचर, सुदूर बांस वन में अग्नि रेखा सुलगती सी, कोई नहीं रखता यहाँ दीवार पार की ख़बर, नगर कीर्तन चलता रहता है ...
-
जिसे लोग बरगद समझते रहे, वो बहुत ही बौना निकला, दूर से देखो तो लगे हक़ीक़ी, छू के देखा तो खिलौना निकला, उसके तहरीरों - से बुझे जंगल की आग, दोब...
-
उम्र भर जिनसे की बातें वो आख़िर में पत्थर के दीवार निकले, ज़रा सी चोट से वो घबरा गए, इस देह से हम कई बार निकले, किसे दिखाते ज़ख़्मों के निशां, क...
-
शेष प्रहर के स्वप्न होते हैं बहुत - ही प्रवाही, मंत्रमुग्ध सीढ़ियों से ले जाते हैं पाताल में, कुछ अंतरंग माया, कुछ सम्मोहित छाया, प्रेम, ग्ला...
-
दो चाय की प्यालियां रखी हैं मेज़ के दो किनारे, पड़ी सी है बेसुध कोई मरू नदी दरमियां हमारे, तुम्हारे - ओंठों पे आ कर रुक जाती हैं मृगतृष्णा, पल...
-
बिन कुछ कहे, बिन कुछ बताए, साथ चलते चलते, न जाने कब और कहाँ निःशब्द मुड़ गए वो तमाम सहयात्री। असल में बहुत मुश्किल है जीवन भर का साथ न...
-
वो किसी अनाम फूल की ख़ुश्बू ! बिखरती, तैरती, उड़ती, नीले नभ और रंग भरी धरती के बीच, कोई पंछी जाए इन्द्रधनु से मिलने लाये सात सुर...
-
कुछ स्मृतियां बसती हैं वीरान रेलवे स्टेशन में, गहन निस्तब्धता के बीच, कुछ निरीह स्वप्न नहीं छू पाते सुबह की पहली किरण, बहुत कुछ रहता है असमा...
वाह ! बेहतरीन शायरी
जवाब देंहटाएंदहलीज़ के पार, बेहद ख़ूबसूरत लगे दुनिया,
जवाब देंहटाएंघर के अंदर रहने वालों को, रुस्वा न कीजिए,
बहुत ख़ूब !! अति सुन्दर सृजन!!
सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंअसंख्य आभार ।
हटाएंवाह ! बहुत खूब। हर पंक्ति में गहन अर्थ।
जवाब देंहटाएंअसंख्य आभार आदरणीया ।
जवाब देंहटाएं