14 नवंबर, 2022

एक बूंद ओस - -

भीड़ भरे राहों में,  ख़ुद को तन्हा न कीजिए,
मिलने की चाह हो, कोई तक़ाज़ा न कीजिए,

दहलीज़ के पार, बेहद  ख़ूबसूरत  लगे दुनिया,
घर के अंदर रहने वालों को, रुस्वा न कीजिए,

बहोत ही मुश्किल से मिलते हैं, दिलों के पुल,
डुबकनी कश्ती की  तरह, यूँ दग़ा न  कीजिए,

घूमते आईने की तरह है, मौसम  का मिज़ाज,
बंद आंखों से हर शख़्स पर, भरोसा न कीजिए,

न जाने किस छत पर, जा गिरे  बर्क़ ए ख़तर,
खुल कर हंसिये यूँ मुंह दबाए हंसा न कीजिए,

बर्ग ए कंवल  की तरह हो, ज़िन्दगी  का दामन,
मुखौटों के आड़ में दुनिया को ठगा न कीजिये ।
* *
- - शांतनु सान्याल  
    
   






6 टिप्‍पणियां:

  1. दहलीज़ के पार, बेहद ख़ूबसूरत लगे दुनिया,
    घर के अंदर रहने वालों को, रुस्वा न कीजिए,
    बहुत ख़ूब !! अति सुन्दर सृजन!!

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  2. वाह ! बहुत खूब। हर पंक्ति में गहन अर्थ।

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