10 नवंबर, 2022

बुलंद आवाज़ - -

उठाओ अहद ऐसी कि आवाज़ आस्मां तक पहुंचे,
आतिश ए तहरीर की लपक, सारे जहां तक पंहुचे,

अज़ाब से कम नहीं है मज़लूमियत क़बूल करना,
उठो इस तरह कि जिसकी ख़बर, तूफ़ां तक पहुंचे,

माथे की लकीरों से नहीं बदलती है कभी ज़िन्दगी,
पैदाइश हक़ है जीना, ये बात निगहबां तक पहुंचे,

तहरीके मशाल बुझे न कभी छद्म रहनुमा के आगे,
आहनी इरादे हैं, ये पैग़ाम शीशे के मकां तक पंहुचे,

तबादिले मुहोब्बत में ग़र होगी कहीं वादाखिलाफ़ी,
ज़ुस्तज़ू ए शिकार इस ज़मीं से कहकशां तक पहुंचे,

तहे दिल से जब ठान लिया हो राहे आग पर चलना,
कफ़न आलूद सर की ख़बर, उस हुक्मरां तक पंहुचे ।
* *
- - शांतनु सान्याल

   
 
 

5 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (12-11-2022) को   "भारतमाता की जय बोलो"  (चर्चा अंक 4609)     पर भी होगी।
    --
    कृपया कुछ लिंकों का अवलोकन करें और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 

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