09 नवंबर, 2022

ख़ामोश आंखें - -

अधूरी कोई हसरत, दिल में दबी सी लगे है,
लब ए फ़रियाद कहते कहते रुकी सी लगे है,

ताउम्र इंतज़ार ए सुबह निगाहों में कट गई,
जुदाई की रात अपनी जगह थमी सी लगे है,

शहर को उजड़े हुए यूँ तो ज़माना बीत गया,
सुरमयी शाम में वो आज भी खड़ी सी लगे है,

सहरे के गिरफ़्त में है दूर तक रूहे गुलिस्तां,
सैलाबे रेत पर रफ़्तारे वक़्त जमी सी लगे है,

हथेलियों में रह गए हैं जुगनुओं के नूरे निशां,
यादों की छुअन आज भी हमनशीं सी लगे है,

किसे ख़बर, किस जानिब से उभरे ज़िन्दगी, -
फिर सुबह की तलब में सांसे रुकी सी लगे है,

यूँ तो, मुलाक़ातों का सफ़र होता है ला'महदूद,
ख़ामोश आँखें हर बार कुछ पूछ रही सी लगे है।
* *
- - शांतनु सान्याल












9 टिप्‍पणियां:

  1. 'ताउम्र इंतज़ार ए सुबह निगाहों में कट गई,
    जुदाई की रात अपनी जगह थमी सी लगे है' -खूबसूरत रचना की बेहतरीन पंक्ति !

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  2. आदरणीय सर , सादर प्रणाम । बहुत ही सुंदर एवं भावपूर्ण रचना , किसी सुखद स्मृति को अनचाही परिस्थिति में बार-बार स्मरण करती हुई सी । आभार एवं पुनः प्रणाम ।

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