जाते हैं कुछ एक रंगीन पंख,
कुछ अंधकार में टिमटिमाते
दो जोड़े आँखों की रौशनी,
चादर के सिलवटों पर
मौसमों के निशान,
साहिल पर पड़े
रहते हैं टूटे
हुए सीप
के कंकाल, रेत में धंसते हुए कुछ
निष्प्राण शंख, हथेलियों
में रह जाते हैं कुछ
एक रंगीन पंख ।
जीवन की
खोज
रहती है असमाप्त, निभृत पलों में
हम तलाशते हैं मोतियों की
चमक एक दूसरे के
अंदर, लेकिन
घिसे हुए
चश्मे
के
उस पार गहरे धुंध के सिवा कुछ
नहीं होता, लेकिन हम आज
भी छूना चाहते हैं अमरत्व
का जादुई अंक, वक़्त
उड़ जाता है तेज़ी
से, हथेलियों
में रह जाते
हैं सिर्फ़
कुछ एक टूटे हुए रंगीन पंंख - -
- - - - -
* *
- - शांतनु सान्याल
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 22 नवम्बर 2022 को साझा की गयी है....
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
असंख्य आभार आदरणीया ।
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (23-11-2022) को "सभ्यता मेरे वतन की, आज चकनाचूर है" (चर्चा अंक-4619) पर भी होगी।--
जवाब देंहटाएंकृपया कुछ लिंकों का अवलोकन करें और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
असंख्य आभार मान्यवर ।
हटाएंये रंगीन पंख भी जीने के लिए बहुत जरुरी हो जाते हैं जिंदगी में कभी-कभी
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ....
असंख्य आभार आदरणीया ।
हटाएंसुन्दर भावों से सजी सार्थक रचना
जवाब देंहटाएंदिल की गहराई से शुक्रिया आदरणीया ।
हटाएंवाह!बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंअसंख्य आभार आपका आदरणीया ।
हटाएंभावपूर्ण लेखन
जवाब देंहटाएंदिल की गहराई से शुक्रिया आदरणीया ।
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