23 नवंबर, 2022

 बहुत कुछ बाक़ी है - -

फ़ासलों में भी कुछ चुम्बक की धार बाक़ी है,
साहिल पे उतरे हैं पांव पूरा मझधार बाक़ी है,

बेख़ुदी में, पी तो लूँ चश्म ए शराब, ऐ दोस्त,
बेहोशी से पहले, दरपेश ज़रा ऐतबार बाक़ी है,

उतरती है रात लड़खड़ाती हुई, नील पहाड़ों से,
बा मुश्ताक़ गुलों में, सुबह ए इंतज़ार बाक़ी है,

अभी अभी तो पिघली हैं बर्फ़ की नाज़ुक ज़मीं,
धुंध की वादियों में, लौटती हुई बहार बाक़ी है,

हर कोई देखना चाहे है, ख़ुद का चेहरा बेदाग़,
ज़ेर ए नक़ाब आइने का राज़े इज़हार बाक़ी है,

अंजामे मसावात ज़रूरी नहीं शून्य ही निकले,
अक्से फ़लक का अभी असल किनार बाक़ी है,

उस निगाह के अंदर दूर तक है, नूर ए हयात,
ख़ुद से निकलें ज़रा अभी सारा संसार बाक़ी है,
* *
- - शांतनु सान्याल  

 

13 टिप्‍पणियां:

  1. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा गुरुवार 24 नवंबर 2022 को 'बचपन बीता इस गुलशन में' (चर्चा अंक 4620) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 24 नवंबर 2022 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  3. कितना अच्छा होता ,मुझे भी उर्दू आती होती!

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    1. मुझे लेकिन हिंदी के शब्दों में लिखना अधिक पसंद है जिस में मिट्टी की गंध छुपी होती है, आपका आभार आदरणीया।

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  4. वाह! बेहद खूबसूरत ख़यालात, उम्दा शायरी

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  5. खूबसूरत ग़ज़ल ।

    हर कोई देखना चाहे है, ख़ुद का चेहरा बेदाग़,
    ज़ेर ए नक़ाब आइने का राज़े इज़हार बाक़ी है,।

    लाजवाब शेर

    जवाब देंहटाएं

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