07 मार्च, 2021

अविरत बहाव - -

बात थी दूर तक, नदी के हमराह बहते
जाना, बिना रुके, बिना थके, अनंत
स्रोत में, देह - प्राण को प्लावित
करना, लेकिन सहज
कहाँ, हर एक
सोच के
अनुकूल जीवन गुज़ारना, बात थी दूर
तक, नदी के हमराह बहते जाना।
नदी के दोनों तटबंधों की
है, अपनी ही अलग
कहानी, कुछ  
घाटों में
थे, सजे हुए मंदिर के दीप स्तम्भ -  
कुछ किनारों से उठता हुआ
धुआं आकाशमुखी,
जीवन को है
हर हाल
में थोड़ा रुकना, थोड़ा चलते जाना,
बात थी दूर तक, नदी के हमराह
बहते जाना। बात थी नदी
के अनुप्रवाह में खो
जाना, जैसे
सभी
रास्ते, अंततः किसी एक बिंदु में आ
कर, लहरों की तरह एक दूजे में
समा जाते हैं, बात थी सभी
विषमताओं को मिल
के लांघना, और
मुहाने की
ओर
बढ़ते जाना, बात थी दूर तक, नदी के
हमराह बहते जाना। समय हो, या
नदी दोनों बात नहीं रखते,
निःशब्द अपने तटों
को बदल जाते
हैं, बात
थी
हमारे मध्य होगा सांसों का सेतु बंधन,
बहुत कुछ तुम ने था कहा, बहुत
कुछ मैंने भी उसमें था जोड़ा,
उत्तरोत्तर वो सभी
बातें, गोखुर -
झील
की
तरह, एक मोड़ पर आ कर सिमट गई,
अब दोनों छोर पर है कोई रेतीला
साम्राज्य, फिर भी सीने के
अंदर कहीं, आज भी हैं
मौजूद, कुछ गीली
मिट्टी के सुरंग -
पथ, बस
इन्हीं  
एहसासों के साथ, ज़िन्दगी को है साहिल
तक निकलते जाना, बात थी
दूर तक, नदी के हमराह
बहते जाना।

* *
- - शांतनु सान्याल
 
 


  

20 टिप्‍पणियां:

  1. कुछ गीले से एहसास और डोर तक नदी के हमराह बनना । अच्छी प्रस्तुति ।

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  2. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार ( 08 -03 -2021 ) को 'आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस है' (चर्चा अंक- 3999) पर भी होगी।आप भी सादर आमंत्रित है।

    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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  3. एक छोटी सी पंक्त‍ि ने बांध ल‍िया...वाह शांतनु जी...क्या खूब ल‍िखा है क‍ि
    जीवन को है
    हर हाल
    में थोड़ा रुकना, थोड़ा चलते जाना...

    जवाब देंहटाएं
  4. मन मोह लिया आपकी इस रचना ने शांतनु जी ।इस रचना ने शांतनु जी ।

    जवाब देंहटाएं
  5. नदी के साथ नदी की तरह होना सहज नहीं है
    जीवन मूल्यों की बेहद मनहर रचना
    सुंदर सृजन
    बधाई

    आग्रह हैं मेरे ब्लॉग को भी फॉलो करें
    आभार

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