31 मार्च, 2021

असमाप्त कोलाहल - -

बूढ़ा बरगद, अपनी जटाओं से भूमध्य  
में कहीं, तलाशता है एक जलज
भूमि, स्वप्न डिम्बक की
तरह जीवन खोजता है
शाखा - प्रशाखाओं
में उड़ने की
जमीं,
कुछ भावनाएं हैं कोषस्थ कीट, झूलते
रहते हैं जीर्ण पल्लव के तीर, वो
रेशमी तंतुओं को चीर, एक
दिन उड़ जाएंगे बहुत
दूर, किसी ऐसे
जगह जहाँ
रहती है
अंतहीन नमी, जीवन खोजता है शाखा -
प्रशाखाओं में उड़ने की ज़मीं। एक
दीर्घवृत्त उभरता है, क्षितिज
की ओर, माटी पर पड़े
रहते हैं, छितराए
सभी अमूल्य
देहावरण,
और
अंतहीन नीरवता की वट छाया, उड़ चली
हैं न जाने कहाँ सभी ख़्वाहिशों की
तितलियाँ, सुबह होगी शाम
भी, उभरेंगे कुछ अंकुर,
धूसर तनों के
कोटरों से,
मकड़
जालों में, झिलमिलाएंगी ओस बूंदों की -
अशेष माया, कोई रहे न रहे, किसी
को यहाँ कुछ भी फ़र्क़ पड़ता
नहीं, हर हाल में जीवन
खोजता है, शाखा -
प्रशाखाओं में
उड़ने की
जमीं।

* *
- - शांतनु सान्याल

 


 







 

20 टिप्‍पणियां:

  1. बूढ़ा बरगद, अपनी जटाओं से भूमध्य
    में कहीं, तलाशता है एक जलज
    भूमि, स्वप्न डिम्बक की
    तरह जीवन खोजता है
    शाखा - प्रशाखाओं
    में उड़ने की
    जमीं,
    आप जीवन के अनुभव लिखते हैं ... सुन्दर प्रस्तुति ..

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  2. बिल्कुल सही कहा सर! साथ कोई रहे न रहे जीवन बस अपना मुकाम तलाश ही लेता है।

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  3. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 31 मार्च 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. वा‍ि शांतनु जी...एक
    दीर्घवृत्त उभरता है, क्षितिज
    की ओर, माटी पर पड़े
    रहते हैं, छितराए
    सभी अमूल्य
    देहावरण...अध्यात्म और जीवन दोनो एक संग पढ़ना हो तो आपकी रचनायें जबरदस्त होती हैं

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  5. जीवन खुद को तलाशता है ... उर कर ही लेता है वो तलाश ...
    लाजवाब रचना है ...

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  6. बहुत सुन्दर..
    कम शब्दों में बड़ी बात
    सादर..

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  7. जीवन जीने की तलाश को बहुत सुंदर
    प्रतीक और बिम्बों के माध्यम से व्यक्त किया है
    बहुत सुंदर रचना
    बधाई

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  8. उड़ चली
    हैं न जाने कहाँ सभी ख़्वाहिशों की
    तितलियाँ, सुबह होगी शाम
    भी, उभरेंगे कुछ अंकुर,
    धूसर तनों के
    कोटरों से,
    मकड़
    जालों में, झिलमिलाएंगी ओस बूंदों की -
    अशेष माया, कोई रहे न रहे, किसी
    को यहाँ कुछ भी फ़र्क़ पड़ता
    नहीं,...जीवन संदर्भ का सुन्दर चिंतन..।

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