06 मार्च, 2021

अंदर का कैनवास - -

कोई कितना भी चढ़ा ले रंग जाफ़रानी,
अदृश्य वहशीपन को रंगना नहीं
है सरल, वो सभी आदिम
पल जो हम गुज़ार
आए, दुनिया
की सोच
जो भी
हो,
अपनी नज़र से बचना है बहुत विरल,
अदृश्य वहशीपन को रंगना नहीं है
सरल। आख़री प्रहर तक वो
जागता है, मेरे शरीर के
बहुत अंदर, निर्वस्त्र
मेरा अस्तित्व
समेटता है
ख़ुद को
ख़ुद
से बाहर, रात जाते जाते, गिरा जाती
है सभी रेत के महल, अदृश्य
वहशीपन को रंगना नहीं
है सरल। सुबह से
पहले उतर
जाती हैं
सभी
पूरबेला, सुदूर क्षितिज में कहीं होता
है नीलाकाश तब बहुत ही अकेला,
सागर सैकत में प्रथम किरण
ढूंढते हैं मुक्तामणि,
टूटे हुए सीपों
के बिखरे
हुए
खोल, नहीं दे पाते गुमशुदा मोतियों
के ठिकाने, कुछ पहेलियों का
नहीं होता है शाब्दिक हल,
अदृश्य वहशीपन को
रंगना नहीं है
सरल।

* *
- - शांतनु सान्याल

15 टिप्‍पणियां:

  1. सच है कि अपनी ही नज़र से बचा नहीं जा सकता ।
    गहन भाव लिए सुंदर प्रस्तुति ।

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  2. पूरबेला, सुदूर क्षितिज में कहीं होता
    है नीलाकाश तब बहुत ही अकेला,
    सागर सैकत में प्रथम किरण
    ढूंढते हैं मुक्तामणि,
    टूटे हुए सीपों
    के बिखरे
    हुए
    खोल, नहीं दे पाते गुमशुदा मोतियों
    के ठिकाने, कुछ पहेलियों का
    नहीं होता है शाब्दिक हल,
    अदृश्य वहशीपन को
    रंगना नहीं है
    सरल।
    बहुत ही सुंदर लिखा है आपने , काफी गहराई है , अति उत्तम कृति, सादर नमन

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  3. अदृश्य वहशीपन को रंगना नहीं
    है सरल, वो सभी आदिम
    पल जो हम गुज़ार
    आए, दुनिया
    की सोच
    जो भी
    हो,
    अपनी नज़र से बचना है बहुत विरल,..बहुत सही कहा है आपने..सुंदर सृजन..

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  4. दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।

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  5. बहुत ही सुंदर लिखा है आपने आदरणीय सर।
    ख़ुद से कब कौन बच पाया है लोग ख़ुद से मुँह मोड़ लेते है।
    सादर

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  6. अपनी नज़र से बचना है बहुत विरल,
    अदृश्य वहशीपन को रंगना नहीं है
    सरल। आख़री प्रहर तक वो
    जागता है, मेरे शरीर के
    बहुत अंदर, निर्वस्त्र
    मेरा अस्तित्व
    समेटता है

    सही कहा आपने अपनी नजरों से बचना बहुत मुश्किल होता है.. सुन्दर रचना...

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  7. मन को बहुत भीतर तक छू लेने वाली रचना वी

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