न जाने कितने आलोक वर्ष पार हुए,
तब जा के कहीं, मैंने तुम्हें है
पाया, न जाने कितने
जन्म - जन्मांतर
के बाद नियति
ने हमें
फिर से है मिलाया, रहने दो खड़े -
अतीत के ठूंठ अपनी जगह,
अर्ध निमग्न पेड़ों की
तरह ऊर्ध्वमुखी,
हर कोई
होना
चाहे इस दुनिया में ज़रा सा सुखी,
तुम्हारे नेह स्पर्श ने ही, उजाड़
धरा के बीच कोमल पुष्प
है खिलाया, न जाने
कितने जन्म -
जन्मांतर
के बाद
नियति ने हमें फिर से है मिलाया।
महाकाश के उस छाया पथ में,
जहाँ बहते हैं, अविरल
आलोक स्रोत,
उसी तट
पर
कहीं मिले हैं हम परस्पर जिस तरह
से मिलते हों, ज्योत से अनंत
ज्योत, उसी मिलन बिंदु
में कहीं हमने, युगल
कंठों से प्रणय
गीत है
गाया,
न जाने कितने जन्म - जन्मांतर - -
के बाद नियति ने हमें फिर
से है मिलाया।
* *
- - शांतनु सान्याल
02 मार्च, 2021
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जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रेम से भरपूर पंक्तियाँ...सच में कितनी मुश्किल से हमें प्रेम करने वाले मिलते हैं.....
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंआपके शब्दों में जादू है शांतनु जी । मंत्रमुग्ध कर देते हैं पढ़ने वाले को ।
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंबहुत बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
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