में सुख को गढ़ें, ज़रूरी नहीं हर एक
ख़्वाब को आकार मिले, अशांत
पृथ्वी का आवर्तन खोजता
है, अंधकार रातों में
एक शांति
स्तूप,
हज़ार मूक क्रंदन के मध्य छुपी रहती -
है निरीह सुबह की धूप। जो जहाँ
भी रहें, अपनी तरह से जीवन
को रचें, ज़रूरी नहीं हर
पत्थर का पारस
होना, फिर भी
कोशिश
हो,
किसी को अनजाने में कोई चोट न
लगे, बहुत कठिन है दिलों को
जीतना, उम्र भर पढ़ने के
बाद भी, ये किताब
रहती है अबूझ,
तारों की
भीड़
में
कब कौन कहाँ, निःशब्द टपक पड़े
किसे ख़बर, अभी तो जी लें
अपनी तरह, आकाश
पार
उमड़ रहा है
उजाले का
जुलूस।
अशांत पृथ्वी का आवर्तन खोजता
है, अंधकार रातों में
एक शांति
स्तूप - -
* *
- - शांतनु सान्याल
उजाले का
जुलूस।
अशांत पृथ्वी का आवर्तन खोजता
है, अंधकार रातों में
एक शांति
स्तूप - -
* *
- - शांतनु सान्याल
बहुत ही सुन्दर और सार्थक रचना
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंयदि जीवन में जो मिला उसी में सुख को गढ़ने की कला आ जाये तो बहुत से व्यर्थ दुःखों से बचा जा सकता है । सार्थक रचना ।
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंज़रूरी नहीं हर एक
जवाब देंहटाएंख़्वाब को आकार मिले, अशांत
पृथ्वी का आवर्तन खोजता
है, अंधकार रातों में
एक शांति
स्तूप,
हज़ार मूक क्रंदन के मध्य छुपी रहती -
है निरीह सुबह की धूप। जो जहाँ
भी रहें, अपनी तरह से जीवन
को रचें, ..बहुत बड़ी सीख भरी आपकी यह कविता,जीवन में आत्मसात करनी चाहिए..समय मिले तो मेरे ब्लॉग पर अवश्य पधारें,सादर..
दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएं
जवाब देंहटाएंअशांत पृथ्वी का आवर्तन खोजता है,
अंधकार रातों में एक शांति स्तूप
अद्भुत आख्यान भरी कविता....
दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंअशांत पृथ्वी का आवर्तन खोजता
जवाब देंहटाएंहै, अंधकार रातों में
एक शांति
स्तूप - -
सुंदर व सार्थक रचना।
सादर।
दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंवाह!बहुत ख़ूब कहा सर।
जवाब देंहटाएंज़रूरी नहीं हर
पत्थर का पारस
होना।
झरने सा बहता सृजन।
सादर
दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंअभी तो जी लें । अपनी जगह बिलकुल ठीक है आपकी इस अभिव्यक्ति का हर शब्द ।
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंवाह । बहुत सुंदर रचना ।
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
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