स्मृतियों के भित्ति चित्र, धीरे धीरे घुप्प
अंधेरे में कहीं खो जाएंगे, रह जाएंगी
शेष, कुछ अनुभूति की उड़ती हुई
चिंगारियां, सभी विष
अपने आप एक
दिन हो
जाएंगे निस्तेज, सुख दुःख हो जाएंगे - -
जब एकाकार, भय मुक्त ह्रदय
को मिल जाएगी उस पल
कल्पतरु की परछाइयां,
रह जाएंगी शेष,
कुछ अनुभूति
की उड़ती
हुई
चिंगारियां। उन कोहरे की वादियों में, -
कोई भी न साथ होगा, कुछ दूर
तक आ कर, कहीं और बरस
जाएंगे मोह के बादल, न
कोई पास, न ही कोई
दूर तक आएगा
नज़र, शब्द
सहसा
हो
जाएंगे मौन, लम्हा - लम्हा दूर होते - -
चली जाएंगी, अंतर की सभी
परेशानियां, रह जाएंगी
शेष, कुछ अनुभूति
की उड़ती हुई
चिंगारियां।
बर्फ़ की
उस
गतिहीन नदी के नीचे रह जाएंगे नेह
के जीवाश्म, कुछ अर्धांकुरित
रिश्तों के बीज, कुछ
चाहतों की अंध
मछलियां,
सृष्टि
का
निर्माण चक्र निरंतर है चलायमान - -
बर्फ़ पिघलते ही जाग उठेंगे
यथारीति सभी प्रसुप्त
तन्हाइयां, रह
जाएंगी शेष,
कुछ
अनुभूति की उड़ती हुई चिंगारियां। - -
- - शांतनु सान्याल
05 मार्च, 2021
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आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 05 मार्च 2021 को साझा की गई है........."सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (०५-०३-२०२१) को 'निसर्ग महा दानी'(चर्चा अंक- ३९९७) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
अनीता सैनी
दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंसुंदर
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंविदा लेने की कल्पना भी बहुत खूबसूरत है ।सुंदर सृजन ।
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंबहुत सुंदर कविता है सर
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंलाज़वाब अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंगुजरे वक़्त में से...
दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंजाएंगे मौन, लम्हा - लम्हा दूर होते - -
जवाब देंहटाएंचली जाएंगी, अंतर की सभी
परेशानियां, रह जाएंगी
शेष, कुछ अनुभूति
की उड़ती हुई
चिंगारियां।
बहुत ही सुंदर सृजन,सादर नमन आपको
दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंजाएंगे मौन, लम्हा - लम्हा दूर होते - -
जवाब देंहटाएंचली जाएंगी, अंतर की सभी
परेशानियां, रह जाएंगी
शेष, कुछ अनुभूति
की उड़ती हुई
चिंगारियां।
बर्फ़ की
उस
गतिहीन नदी के नीचे रह जाएंगे नेह
के जीवाश्म, कुछ अर्धांकुरित
रिश्तों के बीज, कुछ
चाहतों की अंध
मछलियां,
सृष्टि
का
निर्माण चक्र निरंतर है चलायमान - -
बर्फ़ पिघलते ही जाग उठेंगे
यथारीति सभी प्रसुप्त
तन्हाइयां, रह
जाएंगी शेष,
कुछ
अनुभूति की उड़ती हुई चिंगारियां। - -
बेहतरीन, बेहद खूबसूरत रचना, मन को भा गई , बहुत बहुत बधाई हो आपको, नमन
दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंबेहतरीन रचना।
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंबहुत सुंदर, शानदार सृजन, आदरणीय।
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंबहुत बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
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