25 मार्च, 2021

मुठ्ठीबन्द अमरत्व - -

दुःख को हर हाल में ख़ारिज़ करो,
जितना सीने से उसे जकड़ोगे
उतना ही वो, अंदर ही अंदर
जड़ें फैलाता जाएगा,
और कर जाएगा
सर्वनाश,
मुझे
ज्ञात है, दुःखों से बचना भी इतना
सहज नहीं, फिर भी अनुतापी
छद्मवेश से निकल कर,
पाप पुण्य के वृत्त
से बच कर,
ख़ुद में
भरो
आनंद प्रकाश, जो भी उपलब्ध
हैं जीवन के पल उन्हें समेटो
हथेलियों में, उछालो
उन्हें, सागर तट
में, उड़ा दो
हवाओं
में,
निरीह शिशु के रंगीन फुग्गों की
तरह, देखो ज़रा कितनी
हसरत भरी नज़र से
देख चला है तुम्हें
नीलाकाश,
आनंद
के
अंदर ही है सहस्र जीवन, आनंद के
अतल में है मृत्यु का वास, फिर
भी हे जीवन, तुम्हें छू लूँ
एक बार जी भर के,
फिर हो जाऊं
क्यों न,
कोई
पाषाण युगीन, विस्मृत इतिहास !

* *
- - शांतनु सान्याल 

32 टिप्‍पणियां:

  1. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 26-03-2021) को
    "वासन्ती परिधान पहनकर, खिलता फागुन आया" (चर्चा अंक- 4017)
    पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    धन्यवाद.


    "मीना भारद्वाज"

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  2. निरीह शिशु के रंगीन फुग्गों की
    तरह, देखो ज़रा कितनी
    हसरत भरी नज़र से
    देख चला है तुम्हें
    नीलाकाश,

    लाजवाब

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  3. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 25 मार्च 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. चिंता-फ़िक्र जीवन दूभर कर देते हैं ! पर इनसे छुटकारा पाना भी कहाँ आसान है

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  5. गवेषणआ से युक्त जीवन के विभिन्न पहलुओं को उद्घाटित करती सुन्दर अभिव्यक्ति।

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  6. दुःखों से बचना भी इतना
    सहज नहीं, फिर भी अनुतापी
    छद्मवेश से निकल कर,..सच कहा आपने।
    बहुत ही सुंदर सराहनीय सृजन हमेशा की तरह।
    सादर

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  7. जी भर के जी लें,सबकुछ भूल कर यही तो इन्सान नहीं कर पाता.

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  8. जो भी उपलब्ध हैं जीवन के पल, उन्हें समेटो | ठीक कहा शांतनु जी आपने । बहुत अच्छी रचना है यह आपकी - अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाली ।

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  9. मुहब्बत में मैंने तो एक सबक पाया है
    वक़्त और आदमी कभी वफ़ा नहीं करते |
    सार्थक सन्देश ...

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  10. बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय आशावादी रचना |

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  11. जीवन के विभिन्न पहलुओं को प्रकाश डालती सुंदर रचना।

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  12. हृदय तल को स्पर्श करती अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक आभार एवं शुभकामनाएँ।

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  13. प्रणाम शांतनु जी, होली की बहुत बहुत शुभकामनायें...एक उत्कृष्ट रचना पढ़वाने के ल‍िए आपका धन्यवाद...बहुत खूब ल‍िखा क‍ि ..;निरीह शिशु के रंगीन फुग्गों की
    तरह, देखो ज़रा कितनी
    हसरत भरी नज़र से
    देख चला है तुम्हें
    नीलाकाश,
    आनंद
    के
    अंदर ही है सहस्र जीवन...वाह आनंद के अंदर ही है सहस्र जीवन..;

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  14. बेहतरीन कविता...
    गहन चिन्तन का प्रतिबिम्ब है यह

    साधुवाद 🙏

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  15. दु:ख को हर हाल में खारिज करना ही सही है। गहन जीवन दर्शन को समेटे इस सृजन के लिए आपको शुभकामनाएँ।

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  16. आदरणीय,
    कृपया "ग़ज़लयात्रा" की इस लिंक पर भी पधार कर मेरा उत्साहवर्धन करने का कष्ट करें....

    फाग गाता है ईसुरी जंगल

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