13 मार्च, 2021

सहरा की सदा - -

हर सू है ख़मोशी, इक परिंदा ए शब
का है रतजगा, उतरती है चांदनी,
यूँ सांसों के किनारे रफ़्ता
रफ़्ता, बदलते हैं
तख़्त ओ
ताज,
दुनिया के रस्मो रिवाज, बदलती -
नहीं है हज़ार कांटों में मुहोब्बत
की फ़िज़ा, इस रास्ते से
निकलते हैं, बहोत
सारे कोहरे के
ग़ार, कुछ
गूँज
बन के लौटे, कुछ राह में हो गए
लापता, ये ज़रूरी नहीं कि
हर एक का ताउम्र
बावफ़ा होना,
कभी
कभी सितारे भी भूल जाते हैं, - -
डूबने का पता, फ़ैज़ ए
नूर की मजलिस
होती है सिर्फ़
इक रात
की,
क़ब्ल सुबह कुछ भी नहीं रहता -
सूखे पत्तों के सिवा, कौन
किस के लिए है वफ़ादार
कहना नहीं आसान,
नज़र से दूर
होते ही,
सभी
रिश्ते हैं सहरा की सदा।

* *
- - शांतनु सान्याल

   















17 टिप्‍पणियां:

  1. वाह, क्या खूब लिखा है आपने।
    बहुत बढ़िया।

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  2. क़ब्ल सुबह कुछ भी नहीं रहता -
    सूखे पत्तों के सिवा, कौन
    किस के लिए है वफ़ादार
    कहना नहीं आसान,
    नज़र से दूर
    होते ही,
    सभी
    रिश्ते हैं सहरा की सदा।.. वाकई ..बहुत उम्दा नज्म..

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  3. दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।

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  4. हर सू है ख़मोशी, इक परिंदा ए शब
    का है रतजगा, उतरती है चांदनी,
    यूँ सांसों के किनारे रफ़्ता
    रफ़्ता,

    रिश्तों को कहती अच्छी नज़्म .

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  5. कुछ
    गूँज
    बन के लौटे, कुछ राह में हो गए
    लापता, ये ज़रूरी नहीं कि
    हर एक का ताउम्र
    बावफ़ा होना,...बहुत ही सुंदर सराहनीय सृजन।
    सादर

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  6. कौन
    किस के लिए है वफ़ादार
    कहना नहीं आसान,
    नज़र से दूर
    होते ही,
    सभी
    रिश्ते हैं सहरा की सदा।

    बहुत सुन्दर...

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  7. नज़र से दूर
    होते ही,
    सभी
    रिश्ते हैं सहरा की सदा।
    बहुत खूब,सादर नमस्कार सर

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  8. सूखे पत्तों के सिवा, कौन
    किस के लिए है वफ़ादार
    कहना नहीं आसान,-------- बहुत बहुत प्रशंसनीय भाव |

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