04 मार्च, 2021

जंग खाए हुए शब्द - -

सभी चरित्र थे परिकल्पित, उस पार
से सभी दृश्य एक ही थे, क्या  
बिहान की उर्वर भूमि और
क्या अस्ताचल के
मरू प्रांतर,
सत्य
को उजागर करने के लिए हाथ बढ़ा
कर मुखौटों को उतारो तो जाने,
अख़बारों के मुख पृष्ठों
में जो रहते हैं हर
रोज़ मौजूद,
दिखाते
हैं
ख़्वाबों के झूठे बॉयोस्कोप, किसी -
दिन उन्हें नंगे पांव, बंजर
ज़मीं पे उतारो तो
जाने, सत्य
को
उजागर करने के लिए हाथ बढ़ा कर
मुखौटों को उतारो तो जाने।
वो सभी चेहरे जो ख़ुद
को पथ प्रदर्शक
कहा करते
थे उन्हें
अक्सर अंधी गलियों में टहलते हुए
है देखा, सब मिथ्या, सब कुछ
सजाए हुए रंगमंच थे,
भांडों की तरह
सभी चहेरों
को,
रंगीन परदों के पीछे उछलते हुए है
देखा, उनके जिस्म पर असली
पैरहन उभारो तो जाने,
किसी दिन उन्हें
नंगे पांव,
बंजर
ज़मीं पे उतारो तो जाने। दरअसल -
कुछ पीठ हो जाते हैं चाबुक के
अभ्यस्त, और कुछ मुट्ठी
वक़्त के साथ बहुत
ही सख़्त, फिर
भी जंग
लगे
शब्दों को सान पत्थर से निखारो तो
जाने, सत्य को उजागर करने के
लिए हाथ बढ़ा कर मुखौटों
को उतारो तो
जाने।

* *
- - शांतनु सान्याल

18 टिप्‍पणियां:

  1. सभी चरित्र थे परिकल्पित, उस पार
    से सभी दृश्य एक ही थे, क्या
    बिहान की उर्वर भूमि और
    क्या अस्ताचल के
    मरू प्रांतर,
    सत्य
    को उजागर करने के लिए हाथ बढ़ा
    कर मुखौटों को उतारो तो जाने,

    .....अत्यंत ही सुंदर चिंतन। ।।।।। साधुवाद व शुभकामनाएं आदरणीय शांतनु जी।

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  2. वो सभी चेहरे जो ख़ुद
    को पथ प्रदर्शक
    कहा करते
    थे उन्हें
    अक्सर अंधी गलियों में टहलते हुए
    है देखा, सब मिथ्या, सब कुछ
    सजाए हुए रंगमंच थे,
    भांडों की तरह
    सभी चहेरों
    को,
    रंगीन परदों के पीछे उछलते हुए है
    देखा, उनके जिस्म पर असली
    पैरहन उभारो तो जाने..वाह! लाजवाब सृजन।
    पढ़ते-पढ़ते मुग्ध हो जाते हैंसादर

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  3. बहुत अच्छी और मनन करने लायक बातें कही है शांतनु जी आपने ।

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  4. आज तो हर एक मुखौटे लगाए हुए है । किस किस के उतारेंगे । बहुत भावपूर्ण रचना ।

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