अपने पंख खोले बिना कोई
कैसे उड़ान देखेगा, ख़ुद
में बंद हो कर, कोई
कैसे आसमान
देखेगा,
चार
दीवार तक सिमट कर रह
न जाए ज़िन्दगी, ख़ुद
से बाहर निकलो,
तभी सारा
जहान
देखेगा, तुम्हारे अंदर की -
ख़ूबसूरती से, किसे
क्या लेना, चेहरे
की नक़ली
रंगत
को हर एक इंसान देखेगा,
मा'शरा कभी जिस की
बातों पर यक़ीं
करता था,
वक़्त
बदलते ही, उसी शख़्स -
की ज़बान देखेगा,
काज़ी ए शहर
है, दुनिया
में मा'रूफ़
ओ
मशहूर, सब से पहले -
तुम्हारी,जात ओ
ख़ानदान
देखेगा,
उन
सभी चेहरों में कहीं छुपे
हैं, अक्स अदाकारी,
ज़माना बहुत
ख़ुश होगा
जब
तुम्हें परेशान देखेगा - -
* *
- - शांतनु सान्याल
10 मार्च, 2021
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past
-
नेपथ्य में कहीं खो गए सभी उन्मुक्त कंठ, अब तो क़दमबोसी का ज़माना है, कौन सुनेगा तेरी मेरी फ़रियाद - - मंचस्थ है द्रौपदी, हाथ जोड़े हुए, कौन उठेग...
-
कुछ भी नहीं बदला हमारे दरमियां, वही कनखियों से देखने की अदा, वही इशारों की ज़बां, हाथ मिलाने की गर्मियां, बस दिलों में वो मिठास न रही, बिछुड़ ...
-
मृत नदी के दोनों तट पर खड़े हैं निशाचर, सुदूर बांस वन में अग्नि रेखा सुलगती सी, कोई नहीं रखता यहाँ दीवार पार की ख़बर, नगर कीर्तन चलता रहता है ...
-
जिसे लोग बरगद समझते रहे, वो बहुत ही बौना निकला, दूर से देखो तो लगे हक़ीक़ी, छू के देखा तो खिलौना निकला, उसके तहरीरों - से बुझे जंगल की आग, दोब...
-
उम्र भर जिनसे की बातें वो आख़िर में पत्थर के दीवार निकले, ज़रा सी चोट से वो घबरा गए, इस देह से हम कई बार निकले, किसे दिखाते ज़ख़्मों के निशां, क...
-
शेष प्रहर के स्वप्न होते हैं बहुत - ही प्रवाही, मंत्रमुग्ध सीढ़ियों से ले जाते हैं पाताल में, कुछ अंतरंग माया, कुछ सम्मोहित छाया, प्रेम, ग्ला...
-
दो चाय की प्यालियां रखी हैं मेज़ के दो किनारे, पड़ी सी है बेसुध कोई मरू नदी दरमियां हमारे, तुम्हारे - ओंठों पे आ कर रुक जाती हैं मृगतृष्णा, पल...
-
बिन कुछ कहे, बिन कुछ बताए, साथ चलते चलते, न जाने कब और कहाँ निःशब्द मुड़ गए वो तमाम सहयात्री। असल में बहुत मुश्किल है जीवन भर का साथ न...
-
वो किसी अनाम फूल की ख़ुश्बू ! बिखरती, तैरती, उड़ती, नीले नभ और रंग भरी धरती के बीच, कोई पंछी जाए इन्द्रधनु से मिलने लाये सात सुर...
-
कुछ स्मृतियां बसती हैं वीरान रेलवे स्टेशन में, गहन निस्तब्धता के बीच, कुछ निरीह स्वप्न नहीं छू पाते सुबह की पहली किरण, बहुत कुछ रहता है असमा...
उन
जवाब देंहटाएंसभी चेहरों में कहीं छुपे
हैं, अक्स अदाकारी,
ज़माना बहुत
ख़ुश होगा
जब
तुम्हें परेशान देखेगा - -आज के सच को कह दिया है । बिना पंखों को खोले उड़ान संभव ही नहीं है ।
दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंबहुत ख़ूब।
जवाब देंहटाएंपढ़ के आनन्द आ गया। सच तो कड़वा है ही।
मेरी नई रचना
दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंसच बिना मरे स्वर्ग नहीं मिलता
जवाब देंहटाएंखुद मरना पड़ता है, खपना पड़ता है
दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंआपने जो कहा दो टूक कहा शांतनु जी । जो सच है, वो सच है; क्या शक़ है इसमें ?
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंबहुत सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंशिव त्रयोदशी की बहुत-बहुत बधाई हो।
दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंखुद से बाहर निकल कर देखो बहुत बहुत सुंदर हृदय स्पर्शी। सृजन
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएं