26 मार्च, 2021

अन्तः उदय - -

सहसा पथ बदल कर, किसी अन्य राह से
तुम जा चुके हो, अपने सुरक्षित गंतव्य
की ओर, सुना है प्रेम और युद्ध में है
सात ख़ून माफ़, कुछ शिराओं
में बहते हैं, छद्म रंगों के
अनगिनत कण,
परिवेश के
तहत
लोग बदल जाते हैं अपने आप, प्रेम और -
युद्ध में है सात ख़ून माफ़। अपने ही  
प्रेत बिम्ब के सामने, खड़ा हूँ मैं
ले कर हाथ में, एक नग्न
कटार, गढ़ने चला
हूँ, स्वयं को
एक
स्वयंभू अवतार, हालांकि मुखौटे के बहुत
अंदर, अभी तक हैं मौजूद रक्त के
ताज़े छाप, प्रेम और युद्ध में है
सात ख़ून माफ़। सीने का
दुर्ग क्रमशः हो चला
है कमज़ोर, ठीक
आँखों के
सीध
उभर चला है एक संकरे रास्ते का भोर, -
वीरत्व का उपहार मुझे ही मिलेगा,
चाहे जितनी भी दुनिया रहे
मेरे ख़िलाफ़, प्रेम और
युद्ध में है सात
ख़ून माफ़।
असल
में,
मुझे मालूम है नक़ाब ओढ़ कर रात्रि भ्रमण,
अदृश्य रह कर भी देह प्राण तक का
अतिक्रमण, युग पुरुष हूँ मैं
मुझ पर हैं प्रभावहीन
सभी अभिशाप,
प्रेम और
युद्ध में है सात ख़ून माफ़।

* *
- - शांतनु सान्याल
 

21 टिप्‍पणियां:

  1. लोग बदल जाते हैं अपने आप, प्रेम और -
    युद्ध में है सात ख़ून माफ़। अपने ही
    प्रेत बिम्ब के सामने, खड़ा हूँ मैं
    ले कर हाथ में, एक नग्न
    कटार, गढ़ने चला
    हूँ, स्वयं को

    कुछ अलग ही मूड की कविता लग रही है ... भावों तक आसानी से पहुँच नहीं पा रही ...

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  2. छद्म रंगों के
    अनगिनत कण,
    परिवेश के
    तहत
    लोग बदल जाते हैं अपने आप, प्रेम और -
    युद्ध में है सात ख़ून माफ़।
    -------------------
    बहुत सही लिखा है आपने। इस सुंदर और सार्थक सृजन के लिए आपको बधाईयाँ और शुभकामनाएँ।

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  3. परिवेश के तहत लोगों और स्वयं का बदलना स्वाभाविक ही है।
    बेहतरीन कविता सर!

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  4. मुझे मालूम है नक़ाब ओढ़ कर रात्रि भ्रमण,
    अदृश्य रह कर भी देह प्राण तक का
    अतिक्रमण, युग पुरुष हूँ मैं
    मुझ पर हैं प्रभावहीन
    सभी अभिशाप,
    प्रेम और
    युद्ध में है सात ख़ून माफ़।
    बहुत ही प्रभावशाली लेखन शैली है आपकी। जब भी पड़ता हूँ, विभोर हो उठता हूँ।
    बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीय शान्तनु जी।

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  5. शांतनु जी आप की लेखन शैली सबसे अलग हट कर है। इसे न हम गद्य कह सकते हैं और न पद्य। छंदोबद्ध काव्य तो है ही नही और अतुकांत कविता में में बीच में पूर्ण विराम चिन्हों का प्रयोग भी नहीं होता। आप किस कवि की परम्परा का निर्वाह कर रहे हैं। चूंकि आप की लेखन शैली सबसे अलग दिखती है इसलिए हमारे मन में जानने की उत्सुकता है। कृपया हमारी उत्सुकता शांत करने की कृपा करें।धन्यवाद।

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    1. दरअसल, मैं किसी भी कवि या कवियत्री का अनुसरण नहीं करता, ये सभी रचनाएँ स्वस्फूर्त ही लिखी जाती हैं, बचपन से बहुत सारी किताबें हिंदी, बांग्ला में पढ़ी हैं, मैं हिंदी माध्यम का छात्र रहा हूँ, वो भी विज्ञान शाखा का, उर्दू, बांग्ला व अंग्रेजी में निपुणता घर में, स्व अध्ययन से प्राप्त की है, मेरी लिखने की शैली क्या है, मुझे खुद ही नहीं मालूम बस लिखना पसंद है, सो लिखता रहता हूँ। ख़ुशी होती कोई अगर उन्हें पसंद करे, मेरे लेखन में मध्यप्रदेश का अधिक प्रभाव है क्योंकि मेरी शिक्षा दीक्षा सभी वहीँ हुई। मूलतः मैं बांग्ला भाषी हूँ फिर भी विभिन्न भाषाओँ से मातृभाषा की तरह ही प्रेम है, नमन सह आदरणीय। Asharfi Lal Mishra

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    2. बिन लीखै तीनौं चलें,शायर सिंह सपूत। साहित्य जगत में विशिष्ट शैली अपनाने के लिए आप की सराहना करता हूँ। धन्यवाद।

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    3. आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह। Asharfi Lal Mishra

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  6. दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।

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  7. अलहदा सृजन के लिए हार्दिक बधाई ।

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  8. अद्भुत सा मंथन !
    बहुत बहुत सुंदर सृजन।
    होली पर हार्दिक शुभकामनाएं।

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  9. उत्तर
    1. दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह। आलोक सिन्हा

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