19 मार्च, 2021

स्वस्फूर्त रचना - -

शब्द पहेलियों की तरह कभी ऊपर और
कभी नीचे, मिलन बिंदुओं में कहीं
उभर आते हैं, कुछ स्वस्फूर्त
इबारतें, जिनकी हम
अक्सर कल्पना
नहीं करते,
कुछ
लोग जीवन पथ में अचानक स्तम्भित
कर जाते हैं, रह जाती हैं, देर तक
ज़ेहन में उनकी असमाप्त
बातें, मिलन बिंदुओं
में कहीं उभर
आते हैं,
कुछ
स्वस्फूर्त इबारतें। कई बार बहुत कुछ -
समझ कर भी हम, नासमझी का
करते हैं भान, दरअसल, उन
पलों में हम सींचते हैं
झुलसे हुए, दिल
के बाग़ान,
बहोत
मुश्किल से बदलती हैं, ख़ुद को छलने
की आदतें, मिलन बिंदुओं में कहीं
उभर आते हैं, कुछ स्वस्फूर्त
इबारतें। इसी पुरातन
ग्रह के हम सभी
हैं एकात्म
प्राणी,
वही साझा बर्बर जीवन अभी तक है -
हमारे अन्तर्निहित, सिर्फ़ कोस
कोस बदलता जाए पोशाक
और वाणी, कुछ अंधेरे
के भूमिगत स्पृहा,
कुछ उजाले
की सभ्य
चाहतें,
मिलन बिंदुओं में कहीं उभर आते हैं, -
कुछ स्वस्फूर्त इबारतें।

* *
- - शांतनु सान्याल
 
 

13 टिप्‍पणियां:

  1. कई बार बहुत कुछ -
    समझ कर भी हम, नासमझी का
    करते हैं भान, दरअसल, उन
    पलों में हम सींचते हैं
    झुलसे हुए, दिल
    के बाग़ान,

    मन के भावों को सार्थक शब्द दिए हैं ....

    जवाब देंहटाएं
  2. दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।

    जवाब देंहटाएं
  3. कई बार बहुत कुछ -
    समझ कर भी हम, नासमझी का
    करते हैं भान, दरअसल, उन
    पलों में हम सींचते हैं
    झुलसे हुए, दिल
    के बाग़ान,

    सुन्दर अभिव्यक्ति....

    जवाब देंहटाएं

अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past