बिम्बित चतुष्कोण से हम हट सकते हैं,
लेकिन भाग नहीं सकते, वो मौन
पीछा करते हैं अंतिम पहर
तक, हर एक चेहरे में है
कहीं एक अदृश्य
जंगल, दौड़
पड़ते हैं
हिंस्र
पशु की तरह, ग़र ज़रा भी कोई लड़खड़ा
गया, खेदते हुए ले जाएंगे वो सभी
गाढ़ अंधेरे से, रौशनी के शहर
तक, वो मौन पीछा करते
हैं अंतिम पहर तक।
उस सुनहरे
फ्रेम के
पीछे
है आबाद मृगतृष्णा के मायावी प्रदेश, -
हर एक मोड़ पर लगेगा, हम ने बस
पा लिया है मंज़िल, छूट गए हैं
बहोत पीछे वेदना के सभी
अवशेष, लेकिन जैसा
सोचो वैसा नहीं
होता, लौट
आती है
वो
सभी अनसुनी सदा अपने घर तक, वो
मौन पीछा करते हैं अंतिम पहर
तक। चतुरंग दरी बिछी है
यथावत हमारे मध्य,
अनमोल माणभ
पासे बिखरे
पड़े हैं
हर तरफ बेतरतीब, अंतहीन स्तब्धता
में जीवन पाता है, गहन शून्यता
अपने क़रीब, तमाम रात
चलता है ऊपर नीचे
अंकों का खेल,
ढूंढता हूँ
मैं
उसे सघन कोहरे में कहीं, तारों के भीड़
से लेकर अंतर्मन के सिफ़र तक,
वो मौन पीछा करते हैं
अंतिम पहर
तक।
* *
- - शांतनु सान्याल
18 मार्च, 2021
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हर एक मोड़ पर लगेगा, हम ने बस
जवाब देंहटाएंपा लिया है मंज़िल, छूट गए हैं
बहोत पीछे वेदना के सभी
अवशेष, लेकिन जैसा
सोचो वैसा नहीं
होता, लौट
आती है
वो
सभी अनसुनी सदा अपने घर तक, वो
मौन पीछा करते हैं अंतिम पहर
तक।...सच कहा है आपने,बहुत सुंदर और सार्थक अभिव्यक्ति...
दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंये मौन भी कितने कष्टकारी हो जाते कभी कभी .... गहन अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंबहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
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