22 मार्च, 2021

उसे कहीं देखा है - -

उठती हुई, हर एक मंज़िल में कहीं, उसे
देखा है, ढोते हुए सिर पर गारे का
घमेला, किसी और की थी वो
ख़्वाबों की सीढ़ियां, उसे
पाया है टिन की
टपरी में
बहुत
अकेला, रुकता नहीं है, किसी के लिए
ज़िन्दगी का मेला। सरसरी निगाह
से तुम बदलते जाओगे सभी
धूसर पृष्ठ, छूट जाएंगे
शब्द के जंगल में
कहीं यथार्थ
के दृश्य,
शून्य
पर कहीं ठहरा हुआ है काठ का हिंडोला,
उठ गया है सितारों का मीनाबाज़ार,
हमेशा की तरह दोनों हाथ हैं
ख़ाली, रहस्यमय हँसी
लिए, अरगनी से
झांकता है
नियति
का
फटेहाल झोला, शून्य पर कहीं ठहरा
हुआ है काठ का हिंडोला।

* *
- - शांतनु सान्याल
 


  

20 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 23 मार्च 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  2. आज तो बहुत भावमयी रचना लिख दी ... एक मजदूरन का शब्द चित्र खींच दिया ....

    जवाब देंहटाएं
  3. उठती हुई, हर एक मंज़िल में कहीं, उसे
    देखा है, ढोते हुए सिर पर गारे का
    घमेला, किसी और की थी वो
    ख़्वाबों की सीढ़ियां, उसे
    पाया है टिन की
    टपरी में
    बहुत
    अकेला, एक निरीह मजदूरन का खाका खींच आपने भावुक कर दिया,हृदयस्परशी रचना ।

    जवाब देंहटाएं
  4. मन को छूती बहुत ही सुंदर सराहनीय अभिव्यक्ति आदरणीय सर।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  5. भावपूर्ण सुंदर अभिव्यक्ति।

    जवाब देंहटाएं

अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past