उठती हुई, हर एक मंज़िल में कहीं, उसे
देखा है, ढोते हुए सिर पर गारे का
घमेला, किसी और की थी वो
ख़्वाबों की सीढ़ियां, उसे
पाया है टिन की
टपरी में
बहुत
अकेला, रुकता नहीं है, किसी के लिए
ज़िन्दगी का मेला। सरसरी निगाह
से तुम बदलते जाओगे सभी
धूसर पृष्ठ, छूट जाएंगे
शब्द के जंगल में
कहीं यथार्थ
के दृश्य,
शून्य
पर कहीं ठहरा हुआ है काठ का हिंडोला,
उठ गया है सितारों का मीनाबाज़ार,
हमेशा की तरह दोनों हाथ हैं
ख़ाली, रहस्यमय हँसी
लिए, अरगनी से
झांकता है
नियति
का
फटेहाल झोला, शून्य पर कहीं ठहरा
हुआ है काठ का हिंडोला।
* *
- - शांतनु सान्याल
22 मार्च, 2021
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जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंबहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंभावों की गहन अभिव्यक्ति।
दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंबहुत बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंआज तो बहुत भावमयी रचना लिख दी ... एक मजदूरन का शब्द चित्र खींच दिया ....
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंउठती हुई, हर एक मंज़िल में कहीं, उसे
जवाब देंहटाएंदेखा है, ढोते हुए सिर पर गारे का
घमेला, किसी और की थी वो
ख़्वाबों की सीढ़ियां, उसे
पाया है टिन की
टपरी में
बहुत
अकेला, एक निरीह मजदूरन का खाका खींच आपने भावुक कर दिया,हृदयस्परशी रचना ।
दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंमन को छूती बहुत ही सुंदर सराहनीय अभिव्यक्ति आदरणीय सर।
जवाब देंहटाएंसादर
दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंमार्मिक रचना
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंभावपूर्ण सुंदर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।
हटाएंबहुत सुंदर और सार्थक!!!
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएं