24 मार्च, 2021

आत्म विभोर पल - -

रेत के लहरों में, कुछ वायु स्पर्श रह गए,
मरू सर्प की तरह रेंगते से हैं अहसास,
न जाने किस ओर मुड़ गए, वो
सभी रंगसाज़ रास्ते, उन
नागफणी के जंगल
में ढूंढता हूँ कुछ
केंचुली के
उतरन,
कुछ
अनमोल छद्मावरण तुम्हारे वास्ते, न -
जाने किस ओर मुड़ गए, वो सभी
रंगसाज़ रास्ते। वो विष था
या सत्य का पारदर्शी
प्याला, हलक से
आख़िर उतर
ही गया,
उस
मनुहार में है, शत जन्म निछावर, जो
भी हो अमर्त्य की परिभाषा, वो
अनंत प्रणय, बूंद की तरह
देह - प्राण में बिखर
ही गया, कौन
रखता है
याद,
ज़िन्दगी का हिसाब किताब, जब उठ
जाता है नक्षत्रों का महा समारोह,
अवाक से, देखते रह जाते हैं,
पृथ्वी के गुमाश्ते, न
जाने किस ओर
मुड़ गए, वो
सभी
रंगसाज़ रास्ते।

* *
- - शांतनु सान्याल   

 

8 टिप्‍पणियां:

  1. विष था
    या सत्य का पारदर्शीप्याला,
    हलक सेआख़िर उतर ही गया////,
    शांतनु जी, निशब्द करते हैं आपके ये कटु सत्योद्द्घाटन!! काश हर इंसान ये समझने में सक्षम होता तो छद्म आवरण हट जाते सभी आँखों के भी और आत्मा के भी। सुप्रभात और शुभकामनाएं🙏🙏

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  2. उस मनुहार में है, शत जन्म निछावर, जो
    भी हो अमर्त्य की परिभाषा, वो
    अनंत प्रणय, बूंद की तरह
    देह - प्राण में बिखर
    ही गया,
    बहुत खूब, सादर नमन आपको

    जवाब देंहटाएं

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