12 मार्च, 2021

रेत का शहर - -

वक़्त के साथ उतर जाते हैं सभी जश्न के
लहर, वो शख़्स था दिल के बहुत ही
क़रीब, कहने को शिकायतें
उससे कम न थी, मुड़
के काश देखता वो
इक नज़र,
दिल
में हमारी मुहोब्बतें कम न थी, म'यार ए
वफ़ा फिर भी रह गई बेअसर, वक़्त
के साथ उतर जाते हैं सभी जश्न
के लहर। वो नज़दीक आया
तो दिल में चाहतें न
रही, दूर जाते
ही जीस्त
में बढ़
गयीं
ज़रूरतें बहुत, कुछ ज़माने ने छिना, कुछ
तक़दीर का था तक़ाज़ा, यूँ तो कहने
को थीं हसरतें बहुत, अब है इक
ख़ामोश सा, रेत का शहर,
सीने के बहुत अंदर,
वक़्त के साथ,
उतर जाते
हैं सभी
जश्न के लहर।

- - शांतनु सान्याल










20 टिप्‍पणियां:

  1. बिल्कुल ठीक शांतनु जी । आपने जीवन का सच कह दिया अपनी इस अभिव्यक्ति में ।

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  2. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना आज शुक्रवार 12 मार्च 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन " पर आप भी सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद! ,

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  3. वो शख़्स था दिल के बहुत ही
    क़रीब, कहने को शिकायतें
    उससे कम न थी, मुड़
    के काश देखता वो
    इक नज़र,
    दिल
    में हमारी मुहोब्बतें कम न थी,

    बस पलट कर ही तो नहीं देखते . शिकायत बहुत जल्दी हो जाती . सार्थक भाव से लिखी रचना ,

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  4. बहुत सुंदर सार्थक सृजन।
    अभिनव भाव।

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  5. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(१३-०३-२०२१) को 'क्या भूलूँ - क्या याद करूँ'(चर्चा अंक- ४००४) पर भी होगी।

    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    अनीता सैनी

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  6. वो शख़्स था दिल के बहुत हीक़रीब, कहने को शिकायतें उससे कम न थी,/
    मुड़के काश देखता वोइक नज़र,दिलमें हमारी मुहोब्बतें कम न थी,///
    आपकी रचनाएँ और उनके भाव निशब्द कर जाते हैं शांतनु जी | रचना को लिखने और सजाने दोनों कलाओं में आपका कोई सानी नहीं | हार्दिक शुभकामनाएं आपके सुंदर और भापूर्ण लेखन के लिए |

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  7. वो शख़्स था दिल के बहुत ही
    क़रीब, कहने को शिकायतें
    उससे कम न थी, मुड़
    के काश देखता वो
    इक नज़र,
    दिल
    में हमारी मुहोब्बतें कम न थी,
    बहुत सुंदर रचना। ऐसी रचनाएं कभी कभी पढने को मिलती हैं।

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