29 मार्च, 2021

प्रकृत घड़ीसाज़ - -

समय हो चला है स्थविर, सीने के
नीचे लेकिन बहती है कोई
प्रबल धारा, खिड़की
के कांच पर हैं
ठहरे हुए
कुछ
जल बिंदु, सूख जाएंगे अपने आप
सभी क्षत विक्षत घाव के दाग़,
घड़ी के कांटे फिर चल
पड़ेंगे, विंडस्क्रीन
पर चलते ही
वाइपर
ब्लेड,
सारा शहर है गहरी नींद में लीन,
जीवन पृष्ठ को है आगे बढ़ने
का इशारा, सीने के नीचे
लेकिन बहती है कोई
प्रबल धारा। अभी
तक हूँ जीवित,
ये और बात
है कि -
जीवाश्म घड़ियों में तलाशता हूँ
मैं विलुप्त पद चिन्ह, कुछ
बिखरे हुए निशि पुष्प,
निस्तब्ध वीथिका,
क्रमशः ज़र्द
पत्तों का
झरना
है जारी, मध्य रात, कुछ रतजगे
अध्याय, करवट बदलते हुए
पहर, सुदूर दिगंत रेखा
में कहीं उभरता सा
उच्छ्वास भरा
किनारा,
सीने
के
नीचे लेकिन बहती है, कोई प्रबल
धारा।

* *
- - शांतनु सान्याल

 
 
 
 

 

14 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर रचना माननीय।

    रंगों का त्योहार,🏵
    लाए जीवन में बहार।🏵🏵🏵
    सफलता👑 चूमें आपके द्वार
    जगत में फैले कीर्ति अपार।।

    स्वस्थता, प्रसन्नता,सौहार्दता लिए यह सौभाग्यशाली,पावन पर्व आपके एवं आपके परिवार में नित प्रेम का रंग फैलाए।
    आपको सपरिवार रंग-बिरंगी होली की ढेरों शुभकामनाएँ।
    💐💐💐

    सधु चन्द्र

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    उत्तर
    1. आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह। होली की शुभकामनाएं। सधु चन्द्र

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    2. अद्भुत भाव...
      साधुवाद

      होली पर्व पर वंदन...
      अभिनंदन ...
      रंग गुलाल का टीका-चंदन...
      होली की ढेर सारी रंगबिरंगी शुभकामनाएं !!!
      आदर सहित,
      डॉ. वर्षा सिंह

      हटाएं
    3. सुंदर ! होली की हार्दिक शुभकामनाएं

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    4. आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह। Dr Varsha Singh

      हटाएं
    5. आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह। गगन शर्मा, कुछ अलग सा

      हटाएं
  2. होली के अवसर पर बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    रंग भरी होली की शुभकामनाएँ।

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    उत्तर
    1. आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह। होली की शुभकामनाएं। डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. उत्तर
    1. आपका ह्रदय तल से असंख्य आभार, नमन सह। होली की शुभकामनाएं।

      हटाएं
  4. जीवाश्म घड़ियों में तलाशता हूँ
    मैं विलुप्त पद चिन्ह, कुछ
    बिखरे हुए निशि पुष्प,
    निस्तब्ध वीथिका,
    क्रमशः ज़र्द
    पत्तों का
    झरना
    है जारी, मध्य रात, कुछ रतजगे
    अध्याय, करवट बदलते हुए
    पहर, सुदूर दिगंत रेखा
    में कहीं उभरता सा
    उच्छ्वास भरा
    किनारा,
    सीने
    के
    नीचे लेकिन बहती है, कोई प्रबल
    धारा।
    बेहतरीन रचना,बहुत बहुत बधाई हो , शुभ प्रभात

    जवाब देंहटाएं

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