27 मार्च, 2021

सप्तरंगी स्पर्श - -

कुछ प्रतीक्षारत बौर, रहते हैं चिरंतन
सिरमौर, झरते नहीं कभी, चाहे
गुज़रें कितने ही काल -
वैशाखी, एक
अगोचर
दहन,
लिए जीवन, बढ़ता है नए क्षितिज की
ओर, कुछ शेष बसंत के रंग, कुछ
रंगीन पलों के मस्त मलंग,
उड़ते जाएं, सुदूर कुछ
अबीर रंगों के
पाखी, वो
थमते
नहीं कभी, चाहे गुज़रें कितने ही काल -
वैशाखी। अलस भरी दोपहरी, झरते
सेमल फूल के घूंघर, अनंत
संगीत स्रोत, माटी के
अंदर, कदाचित
बसता है
कोई
परजन्म का नगर, उन्मुक्त ह्रदय में है
मन्नतों का वृन्दावन, दुःख हो या
सुख, वो खेले होली आजीवन,
देह प्राण रंग जाए बार
बार, आए न किसी
तरह नज़र,
ह्रदय -
तीर में बसे वो अदृश्य नागर, अलस - -
भरी दोपहरी, झरते सेमल फूल
के घूंघर - -

* *
- - शांतनु सान्याल

15 टिप्‍पणियां:

  1. दिल की गहराइयों से शुक्रिया - - नमन सह।

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  2. उत्कृष्ट रचना आ0

    रंगोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं आ0

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  3. कोमल भावों से युक्त रचना

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  4. उन्मुक्त ह्रदय में है
    मन्नतों का वृन्दावन, दुःख हो या
    सुख, वो खेले होली आजीवन,

    सुंदर सृजन..

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    उत्तर
    1. हृदय तल से आभार - - होली की शुभकामनाएं। विकास नैनवाल 'अंजान'

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  5. उन्मुक्त ह्रदय में है
    मन्नतों का वृन्दावन, दुःख हो या
    सुख, वो खेले होली आजीवन,
    देह प्राण रंग जाए बार
    बार, आए न किसी
    तरह नज़र,
    ह्रदय -
    तीर में बसे वो अदृश्य नागर, अलस - -
    भरी दोपहरी, झरते सेमल फूल
    के घूंघर - -

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