🌿रात ढलते ही उतर गए सभी रौनक़ ओ उफ़ान,
नए - पुराने का द्वन्द्व कैसा, सब हैं एक समान,
जीवन रेखा का रहस्य रहता है अनसुलझा सा,
कोई नहीं इस संसार में समय से बड़ा बलवान,
अदृश्य बंध के आगे, होते हैं सभी यहाँ मजबूर,
बिन नियुक्ति के लौटा देता है यम का दरबान,
जीवनचक्र नहीं रुकता रहता है सदा गतिशील,
व्यर्थ है गणना नियति के हाथों होती है कमान,
अंतहीन हिसाब फिर भी जीवन पृष्ठ रहा कोरा,
अनंत मोह, शून्य ह्रदय को भरना नहीं आसान,
प्रणय पथिक की राह जाती है बियाबां से हो कर,
बिछे रहते हैं क़दम क़दम पर, कांटे और पाषाण,🌿
* *
- - शांतनु सान्याल
03 जनवरी, 2023
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जवाब देंहटाएंअसंख्य आभार आदरणीय, नव वर्ष की अनगिनत शुभकामनाएं।
हटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा गुरुवार 5 जनवरी 2023 को 'पहले लिफ़ाफ़े एक जैसे होते थे' (चर्चा अंक 4633) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
हृदय तल से असंख्य आभार आपका ।
हटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंहृदय तल से असंख्य आभार आपका ।
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