19 जनवरी, 2023

जातक गल्प - -

कहाँ हर कोई होता है शत प्रतिशत सुखी,
अपनी अपनी व्यथा है, किसी का
कुछ अधिक, किसी का बेहद
अल्प, दर्पण का है अपना
ही तक़ाज़ा, समय के
संग उड़ जाते
है चेहरे के
रंग,
झुर्रियों के तिर्यक रेखाओं का नहीं होता -
है काया कल्प, अपनी अपनी व्यथा
है, किसी का कुछ अधिक, किसी
का बेहद अल्प । सूर्यास्त
के साथ बढ़ती जाती
है क्षितिज पार
की शून्यता,
अधखुले
द्वार
से हो कर हिंस्र पदचिन्ह पहुँच जाते हैं - -
अंतःगृह तक, मुखौटे के पीछे छुपे
रहते हैं प्याज रंगी चेहरों के
आदिम युगीन परतें,
अंधेरे में वही लूट
खसोट, उजाले
में लोग
सुनाते
हैं
काल्पनिक सभी जातक गल्प, अपनी -
अपनी व्यथा है, किसी का कुछ
अधिक, किसी का बेहद
अल्प ।
* *
- - शांतनु सान्याल
   


 

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