लाज़िम था ख़्वाबों का डूबना, खोखली थी कगार,
इक रात का फ़ासला, सूरज है डूबा कहीं उस पार,
सुलगते चाहतों में ज़रूर होगा, मेरा भी अफ़साना,
अपना अपना दामन है, कभी गुल, तो कभी ख़ार,
उड़ रहे हैं ज़र्द पत्ते, जाने कहाँ है आख़रत मंज़िल,
मुबाशिरत हम से भी थी, हमने भी देखी थी बहार,
दस्तकों की उम्र थी मुख़्तसर, म'अदुम हुईं दर पर,
जिस्म तो फ़ानी है, ख़त्म नहीं होता रूह ए इंतज़ार,
ये रहगुज़र की ज़मीं है कोई ख़्वाबीदा कहकशां नहीं,
न चाह कर भी हम को पत्थरों पे चलना है बार बार,
* *
- - शांतनु सान्याल
अर्थ :
मुबाशिरत - आत्मीयता
म'अदुम - विलीन
27 जनवरी, 2023
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