उतर चढ़ाव तो हैं एक ही सिक्के के दो पहलू,
दिक् शून्यता में रह कर भी जीवन नहीं
होता अवरुद्ध, बहोत मुश्किल है
सरल रेखा बन कर दूर
तक अविराम
गुज़रना,
हर
मोड़ पर हैं तिर्यक रेखाओं के अशेष जाल,
आसान कहाँ अंध सुरंगों से यूँ बेख़ौफ़
हो कर निकलना, जीने की ललक
बनने नहीं देती आदमी से
बुद्ध, दिक् शून्यता
में रह कर भी
जीवन
नहीं
होता अवरुद्ध । मधुर विष के सिवा कुछ भी
नहीं ये ज़िन्दगी, नग्न सत्य है जीवन -
यापन, दिल की ख़ूबसूरती कोई
नहीं देखता, सभी देखना
चाहें दैहिक विज्ञापन,
सब दृष्टिकोण
के हैं बिंदु,
अपना
अपना सत्यापन, कोई भी शख़्स नहीं यहाँ,
चौबीस कैरेट शुद्ध, दिक् शून्यता में
रह कर भी जीवन नहीं
होता अवरुद्ध ।
* *
- - शांतनु सान्याल
06 जनवरी, 2023
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