29 जनवरी, 2023

अंदर का सफ़रनामा - -

परिंदा ए मुहाजिर को, शहरियत की मुहर चाहिए,
बेहद गहराई तक देखने के लिए चश्म तर चाहिए,

बबूल की टहनियों में झूलते से हैं ख़्वाबों के घरौंदे,
मुख़्तसर ज़िन्दगी के लिए फ़क़त एक घर चाहिए,

मिट्टी का जिस्म है, और चंद लम्हात की पायेदारी,
शीशे की तरह शफ़ाफ़, देखने की इक नज़र चाहिए,

यूँ इंसानियत का तक़ाज़ा दे कर, सर क़लम न कर,
मज़हब के ताबान के लिए, इस्लाह का हुनर चाहिए,

सच्चाई का है ग़र पैरोकार तो आईने से ख़ौफ़ कैसा,
कफ़न आलूद सरों को, शोज़िस ए रहगुज़र  चाहिए,

अधूरेपन के लिए ज़रूरी है, अंदर से तरमीम करना,
रहनुमा के लिए सब से पहले अमल ए असर चाहिए,
* *
- - शांतनु सान्याल    

अर्थ : शोज़िस ए रहगुज़र - अग्निपथ
ताबान - चमक, पैरोकार - अनुयायी,
चश्म तर - भीगी आंख,  तरमीम - सुधार  

इस्लाह - संशोधन, मुहाजिर - प्रवासी

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