कभी उतरो झूलते अलिंद से नीचे, ऊंचाई से
हर चीज़ लगती है बोन्साई, भीड़ में
खोने का सुख अपने आप में
होता है अद्भुत, स्वेद गंध
से मिल कर, एक
समान हो
जाती
है मानव परछाई, ऊंचाई से हर चीज़ लगती -
है बोन्साई । कोहरे की दुनिया मिटा देती
है तमाम अलहदगी, ठिठुरन भरी
सर्दियों में, जलता अलाव
नहीं पूछता है सबब -
ए आवारगी, इक
आंच, जो भर
दे जिस्म
ओ जां
में जीने की ताज़गी, ये ज़रूरी नहीं कि हमेशा
अपेक्षित सुख देगी पश्मीने की रजाई,
ऊंचाई से हर चीज़ लगती है
बोन्साई ।
* *
- - शांतनु सान्याल
08 जनवरी, 2023
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