तिरछी नज़र का था बहाना, मछली की आँख
पे थी निशानदेही, मजलिस ए बादशाह
का है अपना ही अलग क़ानून
ओ क़ायदा, कोई किसी
के मुताल्लिक़ तभी
सोचता है जब
हो कोई
छुपा
हुआ फ़ायदा, बेमतलब लोग, यूँ नहीं करते हैं
आवाजाही, तिरछी नज़र का था बहाना,
मछली की आँख पे थी निशानदेही ।
आलमी जीत से कुछ नहीं हासिल,
हर हाल में ज़रूरी है अपने हम
वतनों से निभाना रिश्ता
ए बिरादरी, वक़्त
बेवक़्त पड़ौस
ही पहले
काम
आता है चाहे रिश्तेदारों का हो बारहा आना
जाना, वक़्त ही बताता है किसने
कितनी दोस्ती निभाई, तिरछी
नज़र का था बहाना, मछली
की आँख पे थी
निशानदेही ।
* *
- - शांतनु सान्याल
22 जनवरी, 2023
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