बहुत ही कठिन है प्रणयी हृदय होना, - -
लोग आकाश की तरह अपने
वक्षस्थल में समेटना
चाहते हैं सितारों
का समारोह,
चाहते हैं
अदृश्य
मालिकाना हक़, कौन समझाए उन्हें - -
रूह होती है आजन्म उन्मुक्त,
चाँदनी रात की तरह ढल
जाता है चार दिन में
देहोत्सव, पल
भर का
होता
है सांसों का आरोह अवरोह, लोग आकाश
की तरह अपने वक्षस्थल में समेटना
चाहते हैं सितारों का समारोह ।
नभ बनने से कहीं कठिन
है एक विस्तृत वृक्ष
का बनना, जो
दे सके सभी
को एक
सायादार आश्रय, बहुत ही कठिन है प्रणयी
हृदय होना, प्रेमी बनने के लिए ज़रूरी
है मंदिर का सांध्य प्रदीप बनना,
तुलसी के नीचे प्रतीक्षारत
शिखाओं से धीरे धीरे
जलना, उर्ध्वमुखी
सुरभित धूप
के साथ
देह
प्राण में बिखरना, प्रणयी मानव के लिए - -
ज़रूरी है त्यागना स्व मोह, बहुत ही
कठिन है प्रणयी हृदय होना,
लोग आकाश की तरह
अपने वक्षस्थल में
समेटना चाहते
हैं सितारों
का
समारोह ।
* *
- - शांतनु सान्याल
17 जनवरी, 2023
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जवाब देंहटाएंअथ स्वागतम शुभ स्वागतम।
दिल की गहराइयों से शुक्रिया।
हटाएंलाजवाब
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया।
हटाएंवाह! गागर में सागर होता है आपका लेखन।
जवाब देंहटाएंप्रेमी बनने के लिए ज़रूरी
है मंदिर का सांध्य प्रदीप बनना,
तुलसी के नीचे प्रतीक्षारत
शिखाओं से धीरे धीरे
जलना... हृदयस्पर्शी सृजन।
नभ बनने से कहीं कठिन
है एक विस्तृत वृक्ष
का बनना.. वाह!
दिल की गहराइयों से शुक्रिया।
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