बहुत कुछ छुपा होता है चेहरे के परावर्तन में,
ज़रूरी नहीं अधर पर शब्दों को सजाया जाए,
तिक्त इतिहास लिखा रहता है निःशब्द कथन में,
झिलमिलाते इस मंडी में, हर चीज़ है बिकाऊ,
कुछ भी नहीं बदला है दुनियादारी के चलन में,
सिर्फ़ मुख़ौटे बदलते हैं, किरदार वही रहता है,
कोई साथ नहीं देता जीवन के अंतिम थकन में,
उदय अस्त के मध्य, बंधा होता है जीवन संग्राम,
मंद मुस्कान के संग नम बूँद भी रहते हैं नयन में,
- - शांतनु सान्याल
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें