🌿रात ढलते ही उतर गए सभी रौनक़ ओ उफ़ान,
नए - पुराने का द्वन्द्व कैसा, सब हैं एक समान,
जीवन रेखा का रहस्य रहता है अनसुलझा सा,
कोई नहीं इस संसार में समय से बड़ा बलवान,
अदृश्य बंध के आगे, होते हैं सभी यहाँ मजबूर,
बिन नियुक्ति के लौटा देता है यम का दरबान,
जीवनचक्र नहीं रुकता रहता है सदा गतिशील,
व्यर्थ है गणना नियति के हाथों होती है कमान,
अंतहीन हिसाब फिर भी जीवन पृष्ठ रहा कोरा,
अनंत मोह, शून्य ह्रदय को भरना नहीं आसान,
प्रणय पथिक की राह जाती है बियाबां से हो कर,
बिछे रहते हैं क़दम क़दम पर, कांटे और पाषाण,🌿
* *
- - शांतनु सान्याल
03 जनवरी, 2023
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
अतीत के पृष्ठों से - - Pages from Past
-
नेपथ्य में कहीं खो गए सभी उन्मुक्त कंठ, अब तो क़दमबोसी का ज़माना है, कौन सुनेगा तेरी मेरी फ़रियाद - - मंचस्थ है द्रौपदी, हाथ जोड़े हुए, कौन उठेग...
-
कुछ भी नहीं बदला हमारे दरमियां, वही कनखियों से देखने की अदा, वही इशारों की ज़बां, हाथ मिलाने की गर्मियां, बस दिलों में वो मिठास न रही, बिछुड़ ...
-
मृत नदी के दोनों तट पर खड़े हैं निशाचर, सुदूर बांस वन में अग्नि रेखा सुलगती सी, कोई नहीं रखता यहाँ दीवार पार की ख़बर, नगर कीर्तन चलता रहता है ...
-
जिसे लोग बरगद समझते रहे, वो बहुत ही बौना निकला, दूर से देखो तो लगे हक़ीक़ी, छू के देखा तो खिलौना निकला, उसके तहरीरों - से बुझे जंगल की आग, दोब...
-
उम्र भर जिनसे की बातें वो आख़िर में पत्थर के दीवार निकले, ज़रा सी चोट से वो घबरा गए, इस देह से हम कई बार निकले, किसे दिखाते ज़ख़्मों के निशां, क...
-
शेष प्रहर के स्वप्न होते हैं बहुत - ही प्रवाही, मंत्रमुग्ध सीढ़ियों से ले जाते हैं पाताल में, कुछ अंतरंग माया, कुछ सम्मोहित छाया, प्रेम, ग्ला...
-
दो चाय की प्यालियां रखी हैं मेज़ के दो किनारे, पड़ी सी है बेसुध कोई मरू नदी दरमियां हमारे, तुम्हारे - ओंठों पे आ कर रुक जाती हैं मृगतृष्णा, पल...
-
कुछ स्मृतियां बसती हैं वीरान रेलवे स्टेशन में, गहन निस्तब्धता के बीच, कुछ निरीह स्वप्न नहीं छू पाते सुबह की पहली किरण, बहुत कुछ रहता है असमा...
-
वो किसी अनाम फूल की ख़ुश्बू ! बिखरती, तैरती, उड़ती, नीले नभ और रंग भरी धरती के बीच, कोई पंछी जाए इन्द्रधनु से मिलने लाये सात सुर...
-
बिन कुछ कहे, बिन कुछ बताए, साथ चलते चलते, न जाने कब और कहाँ निःशब्द मुड़ गए वो तमाम सहयात्री। असल में बहुत मुश्किल है जीवन भर का साथ न...
सुन्दर शुभकामनाएं नववर्ष पर
जवाब देंहटाएंअसंख्य आभार आदरणीय, नव वर्ष की अनगिनत शुभकामनाएं।
हटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा गुरुवार 5 जनवरी 2023 को 'पहले लिफ़ाफ़े एक जैसे होते थे' (चर्चा अंक 4633) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
हृदय तल से असंख्य आभार आपका ।
हटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंहृदय तल से असंख्य आभार आपका ।
जवाब देंहटाएं