21 जनवरी, 2023

 पतझड़ के हमराह - -

ख़ामोश शजर देखता रहा, सूखे पत्तों का गिरना,
खिलने के साथ ही मुक़्क़र्र है, फूलों का बिखरना,

दिल की ज़मीं पर कभी, लब ए दरिया थे आबाद,
मौसम के संग तै था, लेकिन उसका भी सिमटना,

हमने बांधे थे, वक़्त की शाख़ों पे मन्नतों के धागे,
माथे पे था पहले से लिखा हुआ मिल के बिछुड़ना,

हाथों की लकीरों में, कहीं गुम है सितारों का पता,
सफ़र रहा अधूरा, हम सफ़र को था पहले उतरना,

बैरंग लिफ़ाफ़े की तरह चेहरे को उसने लौटा दिया,
बहुत ख़ूबसूरत अंदाज़ था, शिनाख़्त से यूँ मुकरना,

हर मोड़ पे दर ओ बाम हैं, शाम ए चिराग़ से रौशन,
आसां नहीं दर्द ए ज़ीस्त का, सुब्ह से पहले उभरना,
* *
- - शांतनु सान्याल






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