बुरे वक़्त का क़ाफ़िला है, ये भी गुज़र जाएगा, सैलाब ए तीरगी है चाँद निकलते उतर जाएगा,
उतरनों को देख कर, यूं न मुस्कुराइए मोहतरम,
किरदार हो ख़ूबसूरत तो नया बन संवर जाएगा,
उसके हाथों में है चाबुक तो वहशीपन ज़िंदा हो,
ऊँचे दहाड़ के आगे रिंगमास्टर भी ठहर जाएगा,
डूबते सूरज को देख सब लोग मुझसे मुख़ातिब हैं,
मुख़्तसर है रात, सुबह तक दर्द से उभर जाएगा,
बुझ चले हैं झूलते फ़ानूस के चिराग़ रफ़्ता रफ़्ता,
जाते, जाते, मुहोब्बत का क़ातिल असर जाएगा,
- - शांतनु सान्याल
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