उजाले का पुल टूट कर, बिखरता रहा रात भर,
दिल का दीया, अनवरत सिहरता रहा रात भर,
गिरते पत्तों के हमराह था, मुहोब्बत का सफ़र,
दरख़्त ए जिस्म गिर के, संभलता रहा रात भर,
सरसराहटों में कहीं, छुपे थे सभी यादों के साए,
आहटों को मैं, नज़र अंदाज़ करता रहा रात भर,
अज्ञात मंज़िल पे है, बोझिल सांसों का ठिकाना,
न जाने क्यूँ बारहा करवट बदलता रहा रात भर,
शहर से सहरा तक उठ रहे हैं घने धुएं के बादल,
ज़ेरे सीना, अनबुझ ख़्वाब सुलगता रहा रात भर,
जिस्म ओ रूह के बीच बढ़ती रही अदृश्य दूरियां,
अस्तित्व मोम की मानिंद पिघलता रहा रात भर *
* *
- - शांतनु सान्याल
09 जनवरी, 2023
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