01 जनवरी, 2023

 कांच के ख़्वाब - -

मृगतृष्णा है कोई पलाश रंगों का, उठ रही
हैं जाने कहाँ से आतशी लपटें, इन
बर्फ़ से ढंकी वादियों में, कोई
फाल्गुनी ख़्वाब है जो
अक्सर बहकाता
है मुझे, वो
कोई
गहन माया है या तिलस्मी साया, कभी -
मद्धम, कभी शदीद उभरता है जिस्म
ओ जां से हो कर, बार बार उसे
छूने को उकसाता है मुझे,
कोई फाल्गुनी ख़्वाब
है जो अक्सर
बहकाता
है
मुझे । हद ए नज़र तक है कोहरे में डूबे हुए
दरिया के दोनों किनार, बेपाया पुल
है इश्क़ ए जुनूं, झूलता रहता
है सिफ़र के ऊपर, जो
कर जाता है हमें
बहोत दूर इस
दुनिया से
दर -
किनार, किसी कैलिडोस्कोप की तरह कांच
के ख़्वाब वो दिखाता है मुझे, कोई
फाल्गुनी ख़्वाब है जो अक्सर
बहकाता है मुझे - -
* *
- - शांतनु सान्याल

6 टिप्‍पणियां:

  1. नववर्ष मंगलमय हो सभी के लिए सपरिवार | सुंदर रचना|

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    1. असंख्य आभार आदरणीय, नव वर्ष की अनगिनत शुभकामनाएं।

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  2. सुंदर कविता। नववर्ष मंगलमय हो !

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    उत्तर
    1. असंख्य आभार आदरणीय, नव वर्ष की अनगिनत शुभकामनाएं।

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