नाख़ुदा का भरम दे कर, डुबोया है बारम्बार,
जो कहता रहा मुझ को, नफ़ीस ए कायनात,
उसी ने भरे बज़्म में, बनाया हिराज इश्तेहार,
क्या सितारे, क्या कहकशां, डूब गए तमाम,
सांसों के साथ सिर्फ़ ज़िंदा है, बेकरां इंतज़ार,
मिट्टी का जिस्म दे कर, लापता है कूज़ा गर,
बहती रही सांसें, पोशीदा सूराख़ के उस पार,
उम्र भर का आशना, आईना भी निकला ग़ैर,
बेमानी है खोज, यहाँ कोई भी नहीं तलबगार,
पत्थरों के शहर में, इक शीशा ए मुजस्मा हूँ,
हर मोड़ पे हैं नक़ाबपोश मुहज़्ज़ब संगसार ।
- - शांतनु सान्याल
अर्थ :
क़फ़स - पिंजरा
नाख़ुदा - नाविक
नफ़ीस ए कायनात - ब्रह्माण्ड में अनमोल
हिराज इश्तेहार - नीलामी का विज्ञापन
बेकरां - अथाह, कूज़ा गर - कुम्हार
पोशीदा सूराख़ - अदृश्य छिद्र
नक़ाबपोश मुहज़्ज़ब संगसार - मुखौटे वाले
कुलीन पत्थर मारने वाले,
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 24 जनवरी 2023 को साझा की गयी है
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
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आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 24 जनवरी 2023 को साझा की गयी है
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
दिल की गहराइयों से शुक्रिया।
हटाएंवाह!
जवाब देंहटाएंदिल की गहराइयों से शुक्रिया।
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