हृदय पिंजर में कहाँ रुकता है सुख -
पाखी, आँखें खुली शून्य हुआ
रैन बसेरा, स्थिर दृग
जल में तैरते हैं
प्रणय दीप,
बिखरे
पड़े
रहते हैं विस्तीर्ण सैकत में अनगिनत
मृत सीप, दिगंत रेखा में रख
जाता है मोतियों की लड़ी
रात का निस्तब्ध
अंधेरा, हृदय
पिंजर में
कहाँ
रुकता है सुख -पाखी, आँखें खुली - -
शून्य हुआ रैन बसेरा। गुल
मोहर की टहनियों पर
लिखे रहते हैं कुछ
विस्मृत प्रेम
पत्र, कोई
कहीं
नहीं जाता, अपनी अपनी जगह रहते
हैं दिन के उजाले में सभी नक्षत्र,
बहुत कुछ रहता है आँखों से
ओझल, बहुत कुछ
दिखता हैं बन
कर मृग -
जल,
रिश्तों की तर्जुमानी है बस लफ़्ज़ों का
हेर फेर, गुलाब के दामन में रहता
है काँटों का घेरा, हृदय पिंजर
में कहाँ रुकता है सुख -
पाखी, आँखें खुली
शून्य हुआ
रैन -
बसेरा।
* *
- - शांतनु सान्याल
18 जनवरी, 2023
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आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 19 जनवरी 2023 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
दिल की गहराइयों से शुक्रिया।
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