सभी अव्यक्त भावनाओं का अंत है इसी किनारे,
छितरे पड़े रहते हैं कुछ लावा लाई, फूलों के
हार, निष्प्रभ अधजली अगरबत्तियां,
बूढ़ा बरगद सब कुछ देखता है
मौन हो कर, हथेलियों
से फिसल कर उड़
जाती हैं रंगीन
तितलियां,
उस एक
अमिट
बिंदु में जा रुकता है जीवन का निर्यास, सूर्यास्त
के बाद विस्मय रेखा से, पुनः उभरते हैं डूबे
हुए सितारे, सभी अव्यक्त भावनाओं
का अंत है इसी किनारे। निमिष
मात्र में स्मृति खंड डूब जाते
हैं समय स्रोत के मध्य,
भस्म की ढेर में
रहते हैं कुछ
अस्थि
अवशेष, पूर्णता अपूर्णता की कहानियों में कहीं -
जीवन खोजता है मरणोत्तर मुक्ति प्रदेश,
रेत के सीने से मिट जाते हैं लौटे हुए
पद चिन्ह, दूरत्व बढ़ कर अंत
में हो जाते हैं सभी बंधन -
मोह से विच्छिन्न,
अदृश्य होते हैं
अन्तर्निहित
प्रीत के
जलधारे, सभी अव्यक्त भावनाओं का अंत है -
इसी किनारे - -
* *
- - शांतनु सान्याल
28 जनवरी, 2023
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