रूह ए जूनूँ को इक बाज़गस्त ए सदा दे गए,
ईमान ए इश्क़ में दोनों जहां से हुए दर ब दर,
कश्तारगाह में ला कर, जीने की दुआ दे गए,
अंधों के दरबार में, आईना का सच है बेमानी,
झुलसे हुए घरों को और जलने की हवा दे गए,
इंसाफ़ का तराज़ू अपनी जगह रहा पुरअसरार,
उम्र भर की वफ़ा का तवील दर्द ए सिला दे गए,
* *
- - शांतनु सान्याल
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें