01 मार्च, 2023

रंगीन पर्दों के पीछे - -

घूमते आईने सी है ये ज़िंदगी, अक्स बदलते रहे,
मुड़ के देखना था बेमानी, अकेले  ही चलते रहे,

अनसुने से रहे फ़रियाद, नाबीनों की अदालत में,
बेज़ुबान बन कर वक़्त के संग हम भी ढलते रहे,

कोई बर्फ़ का दरिया ही तो है, चेहरे की मुस्कान,
ये दीगर बात है, कि अंदर ही अंदर पिघलते रहे,

साथ रह कर भी रहे हम एक दूसरे से नावाक़िफ़,
मौक़ा मिलते ही संकरी गली से दूर निकलते रहे,

इश्क़ ए मंज़िल का पता रूह को भी मालूम नहीं,
सफ़र में मुसलसल लोग मिले और बिछुड़ते रहे,

हर एक मरहले पे थे, मुख़्तलिफ़ चेहरों की भीड़,
वक़्त के साथ रंगीन पर्दे, अपने आप सरकते रहे,
* *
- - शांतनु सान्याल

4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 02 मार्च 2023 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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