दरख़्तों के वसीयत में, परछाइयां शामिल नहीं होती,
दरिया दिलवालों की, अपनी कोई मंज़िल नहीं होती,
हज़ारों ग़म हैं ज़िन्दगी में, फिर भी मुस्कुराना न भूलें,
कांटों में खिलनेवालों की ख़ुसूसी महफ़िल नहीं होती,
मदहोश है ज़माना, कुछ रंग गुलाल और उड़ाए जाएं,
ख़ुद में सिमटने से, दिल की ख़ुशी हासिल नहीं होती,
दस्तकों से पहले दहलीज़ से बाहर क़दम बढ़ाए जाएं,
क़रीब तो आएं भाईचारगी इतनी मुश्किल नहीं होती,
दायरा ए इश्क़ की सरहद, कहीं कायनात से है वसीह,
जहां की सारी जायदाद, इश्क़ के मुक़ाबिल नहीं होती,
* *
- - शांतनु सान्याल
04 मार्च, 2023
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जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(०५ -०३-२०२३) को 'कुछ रंग आपस में बांटे - --'(चर्चा-अंक -४६४४ ) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
आपका हृदय तल से आभार ।
हटाएंबहुत ही सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंआपका हृदय तल से आभार ।
हटाएंबहुत ही ही सुंदर सृजन आदरनीय ।
जवाब देंहटाएंआपका हृदय तल से आभार ।
हटाएं