दशकों बाद भी हिय से, वाष्प उभरता सा लगे,
खोया हुआ प्रतिबिंब आइने में संवरता सा लगे,
रास्ता जो गुज़रता है महुआ पलाश वन हो कर,
निर्झरिणी तट में कहीं, प्रणय निखरता सा लगे,
अनुपम माधुर्य था षोडशी मधुऋतु के छुअन में,
मुद्दतों बाद भी देह गंध सीने में उतरता सा लगे,
न जाने क्या बात हुई थी, उँगलियों के छुअन में,
आख़री पड़ाव में दिल का दीया सिहरता सा लगे,
अकस्मात् जी उठते हैं, डायरी के बेजान से पृष्ठ,
युवा वसंत जीवन के गहनता में उतरता सा लगे,
प्रथम प्रणय की, मधु प्रतिश्रुति कभी सूखती नहीं,
जीवन परिधि के बाहर, नेह बूंद बिखरता सा लगे,
* *
- - शांतनु सान्याल
23 मार्च, 2023
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बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंआपका असीम आभार आदरणीया ।
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