11 मार्च, 2023

कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता - -

बारम्बार, आ कर लौटा हूँ मैं आख़री पहर से,
पूछा है, मंज़िल का पता, लौटती हुई लहर से,

सीने के बीच से, निकलती है दरिया ए नफ़स,
गुज़रा हूँ मैं कई बार, सुलगते हुए राहगुज़र से,

बहते बहते खो चुका हूँ, मैं रफ़्तार ए ज़िन्दगी,
मुहाने पे आ कर, कोई शिकवा नहीं समंदर से,

कुछ भी हासिल नहीं, इन ख़्वाबों के बाज़ार से,
ख़ामोश  सी सदा उभरती है, जिस्म के अंदर से,

रौशन वरक़ में बिकते हैं, सभी मिलावटी रिश्ते,
दुआ सलाम होता है, बस इक सरसरी नज़र से,

न जाने कहाँ खो से गए, वो एहसास ए आतफ़ी,
बेख़बर से हैं सभी लोग जीने मरने की ख़बर से।
 
* *
- - शांतनु सान्याल 

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